________________
कठिबतम पर कोमलतम सदा जीतता है
भीतर सब कोमल होता है। यह झोंका किसी भी तरह आ सकता है-मित्रता में आ सकता है, पत्नी में आ सकता है, पति में आ सकता है, बच्चे में आ सकता है, एक फूल को देख कर आ सकता है-एक झोंका, जहां आप क्षण भर को तरल हो जाते हैं, बह जाते हैं। लेकिन क्षण भर को ही शायद। फिर आपकी पुरानी कठोरता और पुरानी आदत पकड़ लेगी। . एक सुंदर फूल देख कर क्षण भर को आपका हृदय पिघलता है, लेकिन तत्क्षण आप फूल तोड़ लेते हैं। सच में ही अगर फूल के प्रति प्रेम पैदा हुआ था तो तोड़ना असंभव हो जाता। सोच भी नहीं सकते थे तोड़ने की। प्रेम तोड़ने की बात सोच भी नहीं सकता। लेकिन फूल दिखा, एक क्षण को जरा सी हवा का झोंका आता है, और इसके पहले कि आप सचेत हों कि भीतर कुछ पिघला, आप फूल को तोड़ कर फिर कठोर हो जाते हैं। किसी के प्रति प्रेम पैदा हुआ, और प्रेम का झोंका आ भी नहीं पाया कि आप मालिक होना शुरू हो जाते हैं। वह फूल तोड़ने में आप यही कर रहे हैं, पजेस कर रहे हैं। वह फूल वहां खुले आकाश में हवाओं में नाच रहा था, वह आपकी बर्दाश्त के बाहर हो गया। जब तक आप अपनी मुट्ठी में उसको न ले लें तब तक आपको चैन नहीं। और मुट्ठी में आपके फूल मर जाएगा। मर ही गया, जैसे ही मुट्ठी में आया। कोई भी फूल मुट्ठी में जिंदा नहीं रहते।
किसी से आपका प्रेम हो तो तत्क्षण आप मालिक होने की कोशिश करते हैं। पहला काम जो आपके मन में उठता है वह यह कि कैसे मालिक हो जाऊं, कैसे कब्जा कर लूं, कैसे पजेस कर लूं। जैसे ही पजेसन का, मालकियत का खयाल आया, वह जो हवा का झोंका आया था, जो आपको पिघला सकता था, वह खो गया। आप फिर कठोर हो गए। जैसे ही प्रेम पति बनना चाहता है, प्रेम खो गया। जैसे ही प्रेम पत्नी बनना चाहता है, प्रेम खो गया। - छोटा बच्चा आपके घर में पैदा हो, वह पिघला सकता है। बच्चे अनूठे हैं। क्योंकि इस पूरे मनुष्य के जगत के विकास में बच्चे से ज्यादा कोमल खोजना कुछ भी मुश्किल है। और आदमी के बच्चे सबसे ज्यादा असहाय और सबसे ज्यादा कोमल हैं। जानवरों के बच्चे इतने असहाय नहीं हैं; मां-बाप न भी हों तो बच्चे बच सकते हैं। आदमी का बच्चा तो बच नहीं सकता। जानवरों के बच्चे पैदा हो जाने के बाद एक अर्थ में काम में लग जाते हैं। उन्हें कोई शिक्षण देने की जरूरत नहीं। अपना भोजन खोज लेंगे; अपने जीवन की सुरक्षा करने लग जाएंगे। इसीलिए जानवर परिवार बनाने में असमर्थ रहे। कोई जानवर परिवार नहीं बना पाया; परिवार की कोई जरूरत नहीं। आदमी का बच्चा इस पृथ्वी पर सबसे ज्यादा कोमल और असहाय है। सोच भी नहीं सकते कि बच्चा पैदा हो तो अपने आप बच भी सकता है। कोई बचने का उपाय नहीं है। - इसलिए बच्चा एक परिवार में मौका लाता है कि आप सब पिघल सकते हैं। लेकिन बच्चे के भी हम मालिक हो जाते हैं-बाप हो जाते हैं, मां हो जाते हैं। वह जो एक अनूठी घटना घर में घटी थी, जिसके आस-पास पूरा परिवार पिघल जाता और बह जाता और पानी हो जाता, वह हम चूक जाते हैं। बच्चे की मालकियत शुरू हो जाती है। बच्चे को ढालना हम शुरू कर देते हैं। अच्छा तो यह होता कि बच्चा हमें पिघलाता, बजाय हम उसे ढालते। और हम बच्चे को अपना न मानते। वह हमारा है भी नहीं। हम सिर्फ उपकरण हैं। हमारे भीतर से जगत ने एक और हाथ फैलाया। हमारे बहाने, हमारे निमित्त एक फूल और खिला जीवन का। हम सिर्फ निमित्त हैं, उससे ज्यादा नहीं। लेकिन निमित्त होने में हमें सुख नहीं मालूम पड़ेगा। हम तत्क्षण मालिक हो जाते हैं—मेरा बेटा! और इस मेरे के आग्रह में ही बेटा मर जाता है। फिर हम लाश ढोते हैं।
जहां-जहां प्रेम की थोड़ी सी झलक आती है वहीं हमारी पुरानी कठोरता जकड़ लेती है। इसके प्रति सावधान होना जरूरी है। और जब भी कोई झलक प्रेम की आए तो रोकना अपनी पुरानी आदत को, थोड़ी देर ठहरना फूल को तोड़ने से, थोड़ी देर रुकना मालिक बनने से, थोड़ी देर पिता और मां बनने से अपने को सम्हालना, और सिर्फ प्रेम को
315