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ताओ उपनिषद भाग ४
पर मैं आपसे कहता हूं, जो प्रेम से बचा वह प्रार्थना की तरफ कभी जा ही नहीं सकता। आप जहां हैं वहां से प्रेम के सूत्र को पकड़ने की कोशिश करें, ताकि किसी दिन यह संभव हो सके कि प्रार्थना का सूत्र भी आपकी पकड़ में आ जाए। अभी आप जमी हुई बर्फ हैं; पानी बनें, ताकि किसी दिन आप भाप भी बन सकें। और जो पानी बनने की कला है उसी कला का थोड़ा गुणात्मक विस्तार, परिमाणात्मक विस्तार भाप बना देता है। बर्फ पानी बनता है उष्णता को पीकर, और पानी फिर भाप बनेगा और उष्णता को पीकर। लेकिन सूत्र एक ही है कि उष्णता को पीते चले जाएं। जितनी उष्णता को पी लें उतने ही ज्यादा आप वाष्पीभूत होने के करीब पहुंचने लगेंगे।
__अहंकार से प्रेम, और प्रेम से प्रार्थना। मैं से तू, और तू से वह। ये तीन सीढ़ियां हैं। और जिस दिन भी आपको खयाल में आ जाएगा कि प्रेम की सूक्ष्मता कठोर से कठोर वस्तु में प्रवेश कर जाती है और रूपांतरित कर देती है। पर प्रेम के सूत्र बड़े अजीब हैं। प्रेम कहता है, अगर जीतना हो तो जीतने की कोशिश ही मत करना। अगर जीतना हो तो हार ही सूत्र है; हार जाना, और जीत सुनिश्चित है।
___ 'संसार का कोमलतम तत्व कठिनतम के भीतर से गुजर जाता है। और जो रूपरहित है वह उसमें प्रवेश कर जाता है जो दरारहीन है।'
सूक्ष्म से अर्थ है रूपरहित, फॉर्मलेस। बर्फ का एक रूप है, सुनिश्चित रूप है, आकार है। पानी का रूप है, लेकिन सुनिश्चित नहीं है। आकार है, लेकिन तरल है। पानी आग्रही नहीं है कि मेरा यही आकर है। जिस तरह के बर्तन में डालें, वैसा ही आकार ले लेता है। बर्फ का आग्रह है; उसका अपना आकार है, एक सुनिश्चित रूप-रेखा है। उसे तोड़ें तो कष्ट होगा, उसे बदलें तो पीड़ा होगी। वह प्रतिरोध करेगा बदलने का, परिवर्तन का। लेकिन पानी परिवर्तन के लिए राजी है। क्योंकि आप उसको मिटा नहीं सकते, उसका अपना कोई रूप नहीं। तरल रूप है। और भाप निराकार है। उतना भी रूप नहीं जितना पानी का है। और जितने आप अरूप के पास पहुंचने लगते हैं उतना ही आपका विराट में प्रवेश होने लगता है।
'जो रूपरहित है वह उसमें प्रवेश कर जाता है जो दरारहीन है। इसके जरिए मैं जानता हूं कि अक्रियता का क्या लाभ है।'
अरूप की यह क्षमता, सूक्ष्म की यह शक्ति, निर्बल का यह बल, लाओत्से कहता है, इसके आधार पर मैं जानता हूं कि अक्रियता का क्या लाभ है, इन-एक्टिविटी का क्या लाभ है।
हम क्रिया से परिचित हैं। हम करने के लाभ से परिचित हैं। खाली बैठने के लिए हम भयभीत होते हैं और हम सिखाते हैं कि खाली मत बैठना। क्योंकि अगर कोई खाली बैठा हो तो हम कहते हैं, समय व्यर्थ खो रहे हो, कुछ करो। हमने कहावतें गढ़ रखी हैं कि खाली आदमी का मन शैतान का कारखाना हो जाता है। ये उन लोगों ने कहावतें गढ़ी हैं जो सक्रियता के पीछे पागल हैं; जो कहते हैं, कुछ भी होगा तो करने से होगा; करो! और करते रहो! कुछ न करने से कुछ भी करना बेहतर है, लेकिन खाली बैठे तो उसका अर्थ है समय खोया।
पश्चिम इस पागलपन से बुरी तरह पीड़ित है। पश्चिम सक्रियता का पुजारी है। इसलिए एक ही समय में अगर ज्यादा काम कर सको तो और अच्छा है।
मैं एक चित्र देख रहा था एक चित्रकार का। लाओत्से देखता तो बहुत हंसता। चित्र है एक महिला का, जो रेडियो सुन रही है। हाथ में लेकर सलाइयां बनियान बुन रही है। एक पैर से बच्चे के झूले को झुला रही है। सक्रियता! वह समय का सदुपयोग कर रही है पूरी तरह। रेडियो सुन रही है; बनियान बुन रही है। बच्चे को पैर से झूला झुला रही है। लेकिन इसके भीतर की दशा को हम समझने की कोशिश करें। इसका हृदय बच्चे के प्रति बहुत प्रेमपूर्ण नहीं हो सकता। एक काम है और उस काम को पैर कर रहा है, यांत्रिक है। क्योंकि इसका कान और इसका मन तो रेडियो
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