Book Title: Tao Upnishad Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 384
________________ ताओ उपनिषद भाग ४ 374 में रस लेगा? यह तो हम प्रथम होना चाहते हैं तो हम कई उपाय खोजते हैं प्रथम होने के कोई भी बहाने हम प्रथम होना चाहते हैं। ऐसे-ऐसे उपाय हम खोजते हैं कि कोई भी सोचेगा तो हंसी आएगी। कोई आदमी डाक के टिकट ही इकट्ठे करने लगता है। तो वह इसमें रस लेता है कि गांव में सबसे ज्यादा डाक के टिकट उसके पास हैं। डाक के टिकटों का क्या मूल्य हो सकता है ? कोई आदमी शराब की बोतलें इकट्ठी करने लगता है - खाली बोतलें । पर कुछ भी हो, कोई भी बहाना काम देगा । मेरी अस्मिता तृप्त होनी चाहिए। मैं कुछ हूं जो दूसरा नहीं है; मैं कहीं हूं जहां दूसरा नहीं है; मैं कुछ अनूठा, अद्वितीय हूं, असाधारण हूं। अगर आप अपनी गतिविधियों को खोजेंगे तो उनमें पाएंगे कि यह असाधारण की खोज चल रही है। लाओत्से हंसी उड़ा रहा है। लाओत्से यह कह रहा है कि तुम्हारे घुड़दौड़ के घोड़े कचरा - गाड़ियां ढोएंगे, अगर लोग ताओ के अनुकूल हों । 'और जब संसार ताओ के प्रतिकूल चलता है, तब गांव-गांव में अश्वारोही सेना भर जाती है। ' समस्त युद्धों के पीछे महत्वाकांक्षा है। और जब भी हम स्वभाव को खो देते हैं तो हिंसा भड़क उठती है। हिंसा का अर्थ है कि हम स्वभाव के प्रतिकूल चले गए, हम रुग्ण हो गए। इसे थोड़ा समझें। जब भी हम रुग्ण होते हैं तो हम दूसरे को जिम्मेवार ठहराते हैं। जब भी हम दुखी होते हैं तो किसी को उत्तरदायी ठहराते हैं। अगर आप परेशान हैं तो आप तत्क्षण खोजते हैं कि कौन आपको परेशान कर रहा है! आप कभी नहीं सोचते कि परेशानी के चुकता मालिक आप खुद ही हो सकते हैं; किसी को आपको परेशान करने की जरूरत नहीं है। जब आप क्रोधित होते हैं तो आप सोचते हैं, किसी ने क्रोधित करवाया। जब भी आप बीमार होते हैं तो आप बाहर कारण खोजते हैं; कोई न कोई जिम्मेवार होना चाहिए। इससे आपकी आत्मग्लानि कम हो जाती है। और इससे आप यह भूल जाते हैं कि आपके सब उपद्रव स्वनिर्मित हैं। वैज्ञानिक इस पर बहुत से प्रयोग किए हैं। कुछ प्रयोगों में उन्होंने कुछ व्यक्तियों को सब भांति एकांत में रखा और उनके मन की निरंतर परीक्षण की व्यवस्था की। अड़तालीस घंटे तक एक आदमी अकेला है। कोई कारण नहीं है— कोई उसे गाली नहीं दे रहा है; कोई उसे चिढ़ा नहीं रहा है; कोई उसे दुर्व्यवहार नहीं कर रहा है- वह अकेला ही है। सारी सुविधाएं हैं; भोजन की, पानी की, रहने की, सारी सुविधाएं हैं। लेकिन चौबीस घंटे में वह आदमी चौबीस रंग बदलता है, अकेले में भी। कभी वह क्रोधित हो जाता है; कभी उदास हो जाता है; कभी खुश हो जाता है; कभी गीत गुनगुनाने लगता है; कभी बेचैन दिखाई पड़ता है; कभी बड़े चैन में होता है। जैसे ये उसके भीतर के मौसम हैं जो उसके भीतर चल रहे हैं। अगर वह किसी के साथ होता तो वह इनका कारण दूसरे में खोजता । लेकिन इस एकांत में भी, जब वह खुद ही सब चीजों को पैदा कर रहा है, तब भी वह अपने मन में कारण दूसरा ही खोजता है । अगर वह क्रोधित हो गया है तो वह सोचता है कि परसों किसी आदमी ने गाली दी थी इसलिए मैं क्रोधित हो रहा हूं। अगर वह प्रसन्न हो गया तो सोचता है कि दस दिन पहले उसका फलां आदमी ने इतना सम्मान किया था, इसलिए वह प्रसन्न हो रहा है। लेकिन हम कारण सदा बाहर खोजते हैं। लाओत्से के हिसाब से - और समस्त जानने वालों के हिसाब से सभी के कारण हमारे भीतर हैं। हम प्रसन्न होते हैं तो कारण भीतर हैं, दुखी होते हैं तो कारण भीतर हैं, आनंदित होते हैं तो कारण भीतर हैं। बाहर सिर्फ बहाने हैं, एक्सक्यूजेज हैं, खूंटियां हैं। जो भी हम होते हैं उसी को उन खूंटियों पर टांग देते हैं। और जब सभी लोग अपने स्वभाव से विचलित हो जाते हैं तो स्वभाव से विचलित आदमी निश्चित ही गहरे संताप से भर जाएगा, और संताप के कारण बाहर खोजेगा। यह बाहर कारण खोजना ही समस्त कलह का कारण है। चाहे आप पत्नी से लड़ रहे हों या पत्नी पति से लड़ रही हो, बाप बेटे से लड़ रहा हो, हिंदुस्तान पाकिस्तान से लड़

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