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मार्ग स्वयं के भीतर से है
इसलिए इसे बेचूक किसी से भी कहा जा सकता है कि मन अशांत है। इसके लिए कोई आदमी देखने की जरूरत नहीं, न हाथ की रेखाएं पहचानने की जरूरत है। मन का स्वभाव अशांति है। और ऐसा आदमी तो शायद ही ज्योतिषी के पास आएगा जिसके पास मन न हो। कोई बुद्ध तो हाथ दिखाने ज्योतिषी के पास आने वाले नहीं हैं। बुद्ध के बाबत, बुद्ध के संबंध में अगर यह बात कोई कहे तो गलत हो जाएगी। लेकिन बुद्ध ज्योतिषी के पास आते नहीं। . ज्योतिषी के पास, असल में, अशांत आदमी ही आता है। भविष्य के संबंध में जानने को वही उत्सुक होता है जिसका वर्तमान दुखी हो। जो आज इतनी पीड़ा में पड़ा है कि लगता है आत्मघात कर ले, वह भविष्य के संबंध में थोड़ा जानना चाहता है कि कोई आशा है कि मैं आज बिता लूं, जी लूं, समय बिता दं, गुजार हूँ। कल की आशा में कोई जीने की सुविधा मिल जाए, इसलिए आदमी ज्योतिषी के पास जाता है। दुखी के अतिरिक्त ज्योतिषी के पास कोई जाता नहीं।
तो अगर ज्योतिषी कहे कि मन अशांत है, चित्त दुखी है, संताप से भरा है, चिंताएं घेरे रहती हैं, तो इसमें कुछ जानने की जरूरत नहीं है। अगर ज्योतिषी अपने मन को भी समझता है तो उसने करीब-करीब सभी मनुष्यों के मन को समझ लिया। मन की साधारण सी समझ के ऊपर ही सारा व्यवसाय ज्योतिष का चलता है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि ज्योतिष गलत है, लेकिन जो ज्योतिष सही है वह सड़क पर हाथ देखने वाले ज्योतिषी के पास उपलब्ध नहीं होने वाला है। वह तो बड़ा आंतरिक विज्ञान है; उसका कोई व्यवसाय नहीं बनाया जा सकता। लेकिन जो व्यवसाय कर रहा है वह मनुष्य के मन की समझ के ऊपर कर रहा है।
किसी भी व्यक्ति से कहो कि तुम्हारे जीवन में प्रेम का अभाव है। सभी के लिए लागू होगा। विवाह न हुआ हो तो लागू होगा कि प्रेम का अभाव है और विवाह हुआ हो तो लागू होगा कि प्रेम का अभाव है। प्रेम कभी भरता ही नहीं। और किसी को कभी ऐसा नहीं लगता कि प्रेम मिल गया जितना मिलना चाहिए था। वह तृषा अनंत है; सागर भी प्रेम का मिल जाए तो भी पूरी नहीं होती। तो ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है जिसके संबंध में कहा जाए और गलती हो जाए कि प्रेम का अभाव है।
हर आदमी से कहा जा सकता है कि तुम लोगों के साथ भला करते हो, और लोग उत्तर में बुरा करते हैं। सभी ऐसा मानते हैं; वे जो भला करते हों, न करते हों, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हर आदमी सोचता है, मैं भला कर रहा हूं और प्रतिकार में मुझे बुरा मिल रहा है। ये मन के लक्षण हैं। इनके लिए व्यक्ति-व्यक्ति को जानने की कोई जरूरत नहीं है। ऐसा मन की धारणा है कि मैं अच्छा करता हूं, लोग मेरे साथ बुरा करते हैं। ऐसा तो कोई कभी नहीं सोचता कि मैं लोगों के साथ बुरा करता हूं, लोग मेरे साथ अच्छा करते हैं। कभी कोई आदमी मिला आपको जो कहे कि बड़ी अजीब दुनिया है कि मैं लोगों के साथ बुरा करता हूं और लोग मेरे साथ अच्छा करते हैं! ऐसा आदमी आपको नहीं मिलेगा; क्योंकि यह मन का नियम नहीं है। हालांकि सभी आदमी ऐसे हैं कि अपनी तरफ से हर तरह से बुरा करने की कोशिश करते हैं और दूसरे से हर तरह से भला छीनने की कोशिश करते हैं; लेकिन मन सदा यही कहता है कि मैंने अच्छा किया और दूसरों ने बुरा किया।
सूफी फकीर कहते हैं कि नेकी कर और कुएं में डाल। अच्छे आदमी का लक्षण यह है कि वह अच्छा करे और कुएं में डाल दे इस बात को; फिर इसकी दुबारा बात न उठाए, फिर कभी भूल कर न कहे कि मैंने अच्छा किया, तो ही अच्छा आदमी है। अच्छा करने से कोई अच्छा नहीं होता, अच्छे को करके जो भूल जाए वह अच्छा आदमी है।
अगर हम मन की सामान्य वृत्ति को समझ लें तो दुनिया में क्या हो रहा है, इसको समझने के लिए अखबार उठाने की जरूरत नहीं, न रेडियो सुनने की जरूरत है। और अखबार रोज वही दोहरा रहा है। जो कल हुआ था वह आज हो रहा है; जो परसों हुआ था वह आज हो रहा है। वही कल भी होगा। आप किसी भी दिन के अखबार को
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