Book Title: Tao Upnishad Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 421
________________ जीवन परमात्म-ऊर्जा का खेल है लेंगे। तो हमने अब तक आदमी को जो कर्म करने की शिक्षा दी है उसे हमें बदलना पड़ेगा। क्योंकि आदमी को हम काम दे न पाएंगे। अब तक हमने सबको समझाया था कि काम करने वाला श्रेष्ठ है; आलसी बुरा है। सिखाया था इसलिए कि संसार में काम की बड़ी जरूरत थी। अब काम यंत्र कर लेगा। मार्शल मैकलोहान ने कहा है-इस सदी के बड़े विचारकों में एक-कि इस सदी के पूरे होते-होते हमें हर स्कूल में सिखाना पड़ेगा कि आलस्य महाधर्म है। क्योंकि वे ही लोग शांत बैठ सकेंगे जो आलसी हो सकते हैं, अन्यथा वे काम मांगेंगे। और काम हमारे पास नहीं होगा। काम यंत्र करेंगे। और आदमी से बेहतर काम कर रहे हैं; इसलिए आदमी काम्पिटीशन में अब यंत्रों से टिक नहीं सकता। तो या तो हमें आदमी को फिजूल काम देने पड़ेंगे। जैसी पुरानी कहानियां हैं कि किसी आदमी ने एक प्रेत को जगा लिया, कि एक जिन्न को जगा लिया। और उस जिन्न ने जगते वक्त कहा कि शर्त मेरी एक ही है : सेवा तुम्हारी करूंगा, लेकिन काम मुझे हर पल चाहिए। जिसने जगाया था वह बहुत प्रसन्न हुआ, क्योंकि यह तो बड़ी खुशी की बात है, ऐसा सेवक मिल जाए जिसे हर पल काम चाहिए। पर उसे पता नहीं था कि यह खतरनाक है। घड़ी, दो घड़ी में उसके सारे काम चुक गए। क्योंकि वह प्रेत से कह भी न पाए, कि वह काम करके हाजिर। वह कहे कि काम? सांझ होते-होते वह आदमी घबड़ा गया, क्योंकि काम सब चुक गए और वह आदमी सिर पर खड़ा है कि काम? क्योंकि अगर काम न हो तो उस प्रेत ने कहा था कि मैं तुम्हारी गर्दन दबा दूंगा। तो वह भागा हुआ एक फकीर के पास गया। उसने कहा, मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं, और आपसे ही पूछ सकता हूं कि अब क्या करूं! क्योंकि यह प्रेत मेरे प्राण ले लेगा। उस फकीर ने कहा, तुम एक काम करो। एक सीढ़ी लगा दो अपने मकान पर और उससे कहो कि तू इससे ऊपर तक जा और ऊपर से फिर नीचे तक आ, फिर नीचे से ऊपर तक जा। जब भी कोई काम न हो तो सीढ़ी बता दिए, ताकि वह ऊपर-नीचे होता रहे। करीब-करीब, वैज्ञानिक कह रहे हैं कि आदमी को ऐसी मुसीबत आ जाने वाली है, जब हमें उसे काम देना पड़े सीढ़ी पर चढ़ने जैसा। क्योंकि काम हमारे पास बचेगा नहीं। तब शायद लाओत्से पहली दफा समझ में आने जैसी बात होगी। परम आलस्य भी परम गुण हो जाए। आज भी लोग छुट्टी की राह देखते हैं कि छुट्टी का दिन आ रहा है। लेकिन छुट्टी के दिन लोग परेशान होते हैं, क्योंकि क्या करें? करने का अभ्यास इतना भारी है। खाली बैठने का कोई अभ्यास नहीं है। तो छुट्टी के दिन भी लोग काफी करते हैं। अमरीका के आंकड़े ये हैं कि छुट्टी के दिन लोग जितना थकते हैं उतना काम के दिन नहीं थकते। भागते हैं समुद्र की तरफ, पहाड़ की तरफ, ड्राइव करते हैं सैकड़ों मील। सोमवार को अमरीका के सभी दफ्तरों में लोग थके हुए होते हैं। होना नहीं चाहिए। छुट्टी के दिन विश्राम होना था। छुट्टी के दिन सर्वाधिक एक्सीडेंट होते हैं, सर्वाधिक लोग मरते हैं। आत्महत्याएं होती हैं, और हत्याएं होती हैं। छुट्टी का दिन खतरनाक है; एक दिन है सप्ताह में। जिस दिन पूरा सप्ताह छुट्टी हो और जिस दिन पूरे वर्ष और पूरे जीवन काम यंत्र कर देते हों, और आप खाली हो जाएं, तब आपको पता चलेगा कि तीन-चार-पांच हजार वर्षों में हमने जो सिखाया है कि कर्म करो, कर्म भगवान है, खाली बैठना हराम है, यह जो हमने सिखाया है, यह हमारी छाती पर बैठ जाएगा, यह हमारी गर्दन दबाएगा। यह पूरी शिक्षा हमें बदलनी पड़ेगी। लोगों को हमने सिखाया, काम करो, क्योंकि जिंदगी के लिए जरूरत थी। भोजन नहीं था, कपड़ा नहीं था। वह हालत बदल जाएगी। आलस्य इतना बुरा नहीं रह जाने वाला आने वाली सदी में, जितना पीछे था। और जब लाओत्से कह रहा है परम अयोग्यता की बात तो ऊपरी आलस्य की ही बात नहीं कह रहा है, भीतरी आलस्य की भी कह रहा है। कुछ करने का भाव ही न उठता हो, कहीं जाने की आकांक्षा न पैदा होती हो; अगर इसी A11

Loading...

Page Navigation
1 ... 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444