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श्चिम और पूरब में ज्ञान के बड़े भिन्न अर्थ हैं। पश्चिम में ज्ञान से अर्थ है : बाहर के संबंध में कुछ जानना, वस्तु के संबंध में कुछ जानना। पूरब में ज्ञान का अर्थ है : ज्ञाता को जानना, जानने वाले को जानना। इसलिए पश्चिम में ज्ञान धीरे-धीरे विज्ञान बन गया। जानने वाले को छोड़ कर सब कुछ जानने की खोज पश्चिम में हुई। पूरब में ज्ञान धीरे-धीरे अनुभव बन गया, धर्म बन गया। क्योंकि सारी खोज उसकी करनी है जो खोज करने वाला है। पूरब की मान्यता है, जब तक हम स्वयं को न जान लें तब तक कुछ भी जानने का कोई सार नहीं। और हम कितना ही जान लें स्वयं को बिना जाने, उससे हमारा अज्ञान नहीं मिटेगा। जानकारी बढ़ जाएगी, अज्ञान नहीं
मिटेगा। हम विद्वान हो जाएंगे, ज्ञानी नहीं। जो स्वयं को जान लेता है वही ज्ञानी है। तो पूरब की खोज आंतरिक है; पश्चिम की खोज बहिर्मुखी है। जो बाहर को जानने में समर्थ होगा वह शक्तिशाली हो जाएगा; उसके पास उपकरण, साधन, सुविधाएं, संपन्नता बढ़ जाएगी। जो भीतर को जानने में समर्थ होगा वह शांत हो जाएगा। इस बात को ठीक से समझ लें। जो बाहर के ज्ञान में कुशल होगा उसके पास आनंद उपलब्ध करने की सुविधाएं बढ़ जाएंगी; जरूरी नहीं है कि आनंद बढ़े। क्योंकि सुविधाओं पर आनंद निर्भर नहीं होता, आनंद निर्भर होता है आनंद लेने वाले की आंतरिक क्षमता पर। जो भीतर के ज्ञान में प्रवेश करेगा, हो सकता है, उसके बाहर की सुविधाएं न बढ़ पाएं। शायद ही बढ़ें। लेकिन उसके आनंद की क्षमता बढ़ती चली जाएगी।
वह जो भीतर छिपा है आपके, अगर वह विकसित होता है तो पूरब उसे ज्ञान कहता है; जानकारी अगर बढ़ती है तो पश्चिम उसे ज्ञान कहता है। इसलिए पश्चिम आइंस्टीन को ज्ञानी कह सकता है; हीगल, कांट को ज्ञानी कह सकता है। पूरब उन्हें ज्ञानी नहीं कहेगा; पूरब बुद्ध को ज्ञानी कहेगा, लाओत्से को ज्ञानी कहेगा।
आइंस्टीन और बुद्ध में बड़ा फर्क है। अगर दोनों की जानकारी में प्रतियोगिता हो तो आइंस्टीन ही जीतेगा। बुद्ध की जानकारी क्या है? लेकिन अगर आत्म-सत्ता में, स्वयं के होने की गरिमा में कोई प्रतियोगिता हो तो आइंस्टीन शून्य सिद्ध होगा। बुद्ध के पास कुछ है जो भीतरी है; आइंस्टीन के पास कुछ है जो बाहरी है। आइंस्टीन के पास आंतरिक आनंद की क्षमता नहीं है। इस बुनियादी भेद को खयाल में ले लें तो लाओत्से के सूत्र समझ में आएंगे। अन्यथा लाओत्से के सूत्र समझ में आना मुश्किल है।
'अपने घर के दरवाजे के बाहर बिना पांव दिए ही, कोई जान सकता है कि संसार में क्या हो रहा है।' ।
हमें असंभव लगेगा। क्योंकि सुबह अगर अखबार न मिले तो हमें पता कैसे चलेगा कि संसार में क्या हो रहा है? और अगर रेडियो पर हम खबर न सुनें तो हमें पता कैसे चलेगा कि संसार में क्या हो रहा है? हमारी बात भी ठीक है। क्योंकि संसार में जो कुछ हो रहा है उसकी खबर मिले तो ही हमें पता चल सकता है।
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