Book Title: Tao Upnishad Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 398
________________ ताओ उपनिषद भाग ४ लाओत्से कहता है, 'अपने घर के दरवाजे के बाहर पांव दिए बिना ही, कोई जान सकता है कि संसार में क्या हो रहा है।' यह जानकारी कुछ और बात है। लाओत्से यह कह रहा है कि यह तो पता नहीं चलेगा कि बर्मा में क्या हआ, कि कहां नाव डूबी, कहां युद्ध हुआ; लेकिन जो व्यक्ति स्वयं को जानता है वह जानता है कि आदमी जमीन पर कहां क्या कर रहा होगा-हिंसा भड़क रही होगी; आत्महत्याएं हो रही होंगी; लोग पागल हो रहे होंगे। इसके विस्तार को जानने की जरूरत भी नहीं है। लेकिन आदमी को जो पहचानता है, वह जानता है कि संसार में क्या हो रहा होगा। और आदमी को वही पहचान सकता है जो स्वयं को पहचानता है। जो अपने मन को जान लेता है वह जानता है कि सब जगह क्या हो रहा होगा। उसे विस्तार पता न हो, लेकिन उसे मूल पता होगा। आप ज्योतिषी के पास जाते हैं, हस्तरेखाविद के पास जाते हैं, और कुछ बातें हस्तरेखाविद और ज्योतिषी आपको बताते हैं। शायद आप सोचते हैं कि कोई बहुत विज्ञान के आधार पर आपको कुछ बताया जा रहा है तो आप गलत सोचते हैं। ज्योतिषी, हस्तरेखाविद, आदमी के मन में क्या हो रहा है, इसकी परंपरागत जानकारी है। डिटेल्स, विस्तार में आपको क्या हो रहा है, यह बताना मुश्किल है। लेकिन क्या हो रहा है, सारभूत बताया जा सकता है। क्योंकि हर आदमी को हो रहा है। मेरे एक मित्र ज्योतिषी हैं। वे जिसका भी हाथ देखेंगे, उसको वे बताएंगे कि रुपया तो आता है, लेकिन हाथ में टिकता नहीं। किसके टिकता है? रुपया टिक जाए तो रुपया नहीं है; उसका कोई अर्थ ही नहीं है। रुपये का मतलब ही यह है कि वह जाए, चले, एक्सचेंज, विनिमय हो, बदले हाथ, तो ही उसका मूल्य है। रुपया जब हाथ बदलता है तभी रुपया है। अगर हाथ में ही रह जाए तो वह मिट्टी है। उसमें मूल्य तो तभी आता है जब वह एक हाथ से दूसरे हाथ में जाता है। तो बीच में जो जगह है वही उसका मूल्य है। तो जितना रुपया चले उतना मूल्यवान होता है। जिन मुल्कों में रुपया जितनी यात्रा करता है, वे मुल्क उतने धनी हो जाते हैं। अमरीका इतना धनी नहीं है जितना दिखाई पड़ता है। दिखाई पड़ता है, क्योंकि रुपया बहुत गति करता है। अगर भारतीय के हाथ में रुपया पकड़ा दिया जाए तो जिसके साथ में है वह पकड़े रहेगा, जब तक कि मजबूरी में छोड़ना न पड़े। अमरीकन, रुपया हाथ में आएगा बीस साल बाद, छोड़ देता है आज। इंस्टालमेंट पर चीजें खरीद रहा है, जिन्हें वह बीस साल में चुकाएगा। बीस साल बाद जब उसके पास पैसा होगा तब वह चुकाएगा। रुपया बीस साल बाद आएगा; उसने चला दिया है आज। उधार ले रहा है। इतना रुपया गति कर रहा है, इतने हाथ बदल रहा है, इसलिए अमरीका इतना धनी है। अमरीका का पूरा अर्थशास्त्र इस पर खड़ा है कि जितना तुम खर्च करोगे उतने ही संपन्न हो जाओगे। रुपये में मूल्य आता है जब वह हाथ बदलता है; तभी उसके मूल्य का पता चलता है। तो ठीक ही है, वह रुपये का गुणधर्म है। और फिर आदमी के मन का भी गुणधर्म है कि चाहे आपको कितना ही मिल जाए और चाहे आप कितना ही रोक लें, लगेगा सदा आपको ऐसा ही कि रुपया टिकता नहीं है। उसके कारण हैं। क्योंकि जितना आप टिकाना चाहते हैं, उसकी कोई सीमा नहीं है। आप चाहते हैं, सब धन इकट्ठा होता चला जाए। वैसा नहीं हो सकता। और कितना ही इकट्ठा हो जाए तो भी आपको लगता है, जितना हो सकता था उससे कम हो रहा है। इसलिए धनी से धनी आदमी को और कृपण से कृपण आदमी को भी कहो कि हाथ में रुपया आता है और टिकता नहीं, वह भी स्वीकार करता है कि यह बात सत्य है। किसी भी आदमी से, वे मेरे मित्र कहते हैं कि मन अशांत है। मन का होना अशांति है। जिसके पास मन है, अशांति होगी ही। मन अशांत नहीं होता, मन ही अशांति है। 388

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