Book Title: Tao Upnishad Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 383
________________ प्रार्थबा मांग बहीं, धन्यवाद है मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन ने एक बार चिकित्सा का काम शुरू किया था। सारा आयोजन कर लिया था, द्वार पर तख्ती लगा दी थी और मरीज की प्रतीक्षा में था। पहला ही मरीज आया। और उस मरीज ने कहा कि मैं बड़ी मुश्किल में हूं, बहुत निराश हो चुका हूं। जगह-जगह खोज तो चुका, जगह-जगह चिकित्सक, वैद्य, हकीम, कोई भी मुझे ठीक नहीं कर पा रहे हैं। मेरी रीढ़ में सदा ही दर्द बना रहता है। और इसे कुछ वर्षों हो गए, बारह-पंद्रह वर्ष हो गए। मुल्ला नसरुद्दीन ने काफी सोचा और फिर कहा, तुम एक काम करो। सर्दी के दिन हैं, रात तुम स्नान करो और बाहर घर के खड़े हो जाओ। कपड़े से सुखाना भी मत शरीर को। ठंडी बर्फीली हवाएं बह रही हैं। उस आदमी ने कहा, क्या? क्या इससे मेरी रीढ़ का दर्द ठीक हो जाएगा? नसरुद्दीन ने कहा, यह मैंने कहा भी नहीं। इससे तुम्हें डबल निमोनिया हो जाएगा। और डबल निमोनिया का इलाज मेरे पास है, रामबाण दवा मेरे पास है। फिर चिकित्सक के पास जिस बात की दवा है वह उस बीमारी को खोजता है। न हो तो पैदा करता है। इसलिए आप जाएं होम्योपैथ के पास, तो वह और बीमारी खोजता है; एलोपैथ के पास, वह और बीमारी खोजता है; नेचरोपैथ के पास, वह कोई और ही बीमारी खोजता है। जितनी चिकित्सा विधियों के पास आप जाएंगे, वे अलग-अलग निदान करेंगे। निदान का मतलब ही इतना है कि जिस बात का वे इलाज कर सकते हैं वही उनका निदान होगा। आपसे बहुत कम प्रयोजन है। वे क्या कर सकते हैं, उससे ही ज्यादा प्रयोजन है। आप सिर्फ निमित्त मात्र हो। धर्मगुरुओं के पास भी वही है। आपकी क्या तकलीफ है, यह सवाल नहीं है। उनके पास कौन सी औषधि है। लाओत्से कहता है, एक तो बीमारी का उपद्रव, फिर औषधि का उपद्रव; इसका फिर कोई अंत नहीं है। बीमारी __ पैदा न हो। मेरे पास लोग आते हैं। वे पूछते हैं, मन अशांत है, कैसे शांत करें? मैं उनसे पूछता हूं कि तुम इसकी फिक्र न करो कि कैसे शांत करें; पहले इसकी ही फिक्र करो कि कैसे तुमने अशांत किया है! और तुम उन कारणों को हटा दो जिनसे तुमने अशांत किया है। लेकिन यह लंबा मामला मालूम पड़ता है। और उन्हें लगता है कि यह असंभव है। वे कहते हैं, यह तो छोड़ें, आप तो शांति का कोई उपाय, कोई मंत्र बता दें। अशांति को वे पैदा करते रहेंगे; अशांति को रोकने के लिए वे तैयार नहीं हैं; अशांति में इनवेस्टमेंट है, उससे कुछ और मिल रहा है, तो अशांति वे छोड़ नहीं सकते और शांति का कोई ऊपर से इलाज चाहते हैं। अगर शांति ऐसे मिल सकती तब सारी दुनिया के लोग कभी के शांत हो गए होते। शांति ऐसे नहीं मिल सकती; अशांति के कारण हटाने होंगे। लाओत्से के हिसाब से अशांति के कारण समझ लेने चाहिए। - 'जब संसार ताओ के अनुकूल जीता है, स्वभाव के अनुकूल जीता है, तब घुड़दौड़ के घोड़े कचरा-गाड़ी खींचने के काम आते हैं।' घुड़दौड़ के घोड़े आपकी महत्वाकांक्षाओं के घोड़े हैं। यह थोड़ी हैरानी की बात है कि आदमी घोड़ों को दौड़ा कर भी हार-जीत का निर्णय करता है। घोड़े दौड़ते हैं, और आदमी उनमें प्रथम और द्वितीय आते हैं। घोड़े दौड़ते हैं, और लाखों लोग उन्हें देखने इकट्ठे होते हैं। आप आदमियों को दौड़ाएं, लाख घोड़ों को इकट्ठा आप कभी नहीं कर सकते देखने के लिए। घोड़ों को इसमें कुछ रस ही न होगा, और घोड़े बिलकुल भी प्रसन्नचित्त न होंगे कि कोई आदमी दौड़ रहे हैं और इससे कुछ...। घोड़ों की अपनी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है। आदमी सब बहाने-चाहे वह खेल खेलता हो, ताश खेलता हो, कबड्डी खेलता हो, फुटबाल खेलता हो, वह कुछ भी करता हो-सब जगह हार और जीत को खोजता है, सब जगह अहंकार को प्रतिष्ठित करने के उपाय करता है। उसके खेल भी बीमारियां हैं। ___ लाओत्से कह रहा है, अगर संसार ताओ के अनुकूल हो तो घुड़दौड़ के घोड़े कचरा-गाड़ी खींचने के काम आएंगे। कौन उन्हें दौड़ाएगा? कौन उनके ऊपर महत्वाकांक्षा की सवारी करेगा? कौन उनके प्रथम और द्वितीय आने 373|

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