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कठिनतम पर कोमलतम सदा जीतता है
से लगा है। यह पति के लिए बनियान बुन रही होगी, यह भी बहुत प्रेमपूर्ण नहीं हो सकता। हाथ यंत्रवत बुने जा रहे हैं, जैसे कोई मशीन बुन रही हो। इस बनियान में प्रेम नहीं गूंथा जा रहा है। यह बनियान बन जाएगी, क्योंकि हाथ कुशल हैं, वे बुनना जानते हैं। लेकिन इसमें हृदय का कहीं कोई संस्पर्श नहीं है। और इस स्त्री का व्यक्तित्व बंटा हुआ है, जिसको मनोवैज्ञानिक सीजोफ्रेनिया कहते हैं; खंडित है। यह स्त्री अखंड नहीं है। यह जो सुन रही है वह भी पूरी तरह नहीं सुन रही है; यह जो कर रही है वह भी पूरी तरह नहीं कर रही है; यह बच्चे को झुला रही है वह भी पूरी तरह नहीं झुला रही है। सब अधूरा-अधूरा है। और इसके भीतर एक बेचैनी होगी, इसके भीतर चैन नहीं हो सकता। क्योंकि चैन तो केवल उन्हीं लोगों के भीतर होता है जो अखंड हैं।
लाओत्से इस चित्र को देखता तो बहुत हंसता। लेकिन आप इस चित्र को देखेंगे तो आप भी ऐसा करना चाहेंगे। सोचेंगे कि यह तो समय की बहुत बचत है, यह तो समय का ठीक-ठीक उपयोग है, तीन गुना ज्यादा, इकनॉमिक है। क्योंकि अगर ये तीनों काम अलग-अलग करो तो तीन घंटे लगेंगे। यह एक घंटे में तीन काम हुए जा रहे हैं। और हमारी पूरी चेष्टा यही है, हम सब यही कर रहे हैं-कितने कम समय में कितना ज्यादा हम कर सकें! लेकिन बिना इस बात की फिक्र किए कि उस ज्यादा का मूल्य क्या है, उस ज्यादा का फलित क्या है, अंतिम फल क्या है। आदमी बहुत कर लेता है और करने में नष्ट हो जाता है।
पश्चिम में यह स्थिति आखिरी जगह पहुंच गई है, विक्षिप्तता की जगह पहुंच गई है। लोग भागे जा रहे हैं; चौबीस घंटे भाग रहे हैं। कहां जा रहे हैं उसका बहुत साफ नहीं है। लेकिन तेजी से जा रहे हैं इतना निश्चित है। रास्ते पर किसी आदमी की कार को अगर दो मिनट रुकना पड़े तो वह अपने हार्न को बजाना शुरू कर देता है। वह कभी भी नहीं सोचता कि वह दो मिनट बचा कर कहां उपयोग कर रहा है, क्या होने वाला है। घर बैठ कर वह जाकर सोचता है कि अब क्या करें! रास्ते पर वह इतनी तेजी में था कि ऐसा लगता था कि कहीं निश्चित पहुंचना है। और घर पहुंच कर वह कहता है कि अब क्या करें! तब वह सोचता है कि क्लब जाऊं, कि ताश खेलूं, कि शराब पीऊं-समय कैसे काटूं! और यही आदमी सड़क पर एक मिनट इसको देर हो रही हो तो इतना पागल हो जाता है कि ऐसा लगता है कि बहुत इमरजेंसी में है। और घर जाकर वह समय काटने के उपाय खोजता है।
इसे साफ नहीं कि यह क्या कर रहा है, क्यों कर रहा है। सड़क पर गुजरने का जो आनंद था वह भी चूक गया, क्योंकि वहां जल्दी में था। घर होने का जो आनंद हो सकता है वह भी चूक रहा है, क्योंकि उसे समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या करे, और कुछ भी खोज रहा है। - करने की इतनी प्रतिष्ठा एक ही अर्थ रखती है कि हमारे जीवन में होने का कोई मूल्य नहीं है। अपना कोई मूल्य नहीं है; हम क्या करके दिखा सकते हैं, बस उसका मूल्य है। अगर आप एक बड़ा मकान खड़ा कर सकते हैं तो लोग आपका आदर करेंगे। आपका कोई आदर नहीं करता। आप करोड़ रुपए की कमाई कर लेते हैं तो लोग आपका आदर करेंगे। आपका कोई आदर नहीं करता। और आप कभी नहीं पूछते कि लोग मेरा आदर करते हैं? कोई आपका आदर नहीं करता; आपने क्या किया है, उसका आदर है। कोई दूसरा भी यही करता तो उसका आदर होता।
यह हम देखते हैं कि एक आदमी राष्ट्रपति हो, जब तक राष्ट्रपति है, पूरे मुल्क में सम्मान है। जिस दिन राष्ट्रपति नहीं है, कोई भी उसकी चिंता नहीं लेता, अखबार में उसकी खबर नहीं छपती। फिर पता ही नहीं चलता कि वह आदमी है भी, कि नहीं है, कि क्या हुआ। दो दिन पहले उसके हर वचन का मूल्य था; और दो दिन बाद ? मूल्य बढ़ना चाहिए, क्योंकि अब वह और भी ज्यादा अनुभवी है, दो दिन का अनुभव और हो गया। लेकिन उसके वचन का कोई मूल्य नहीं रह गया। लेकिन उस आदमी को भी कभी यह खयाल नहीं आता कि वह प्रतिष्ठा पद की थी, कुर्सी की थी, मेरी नहीं थी। वह भी सोचता है मेरी प्रतिष्ठा थी।
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