Book Title: Tao Upnishad Part 04
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

View full book text
Previous | Next

Page 364
________________ ताओ उपनिषद भाग ४ मुश्किल है लेकिन, क्योंकि हमारे भाषा के हिसाब में पूर्ण का मतलब है, विराम आ गया, पूर्णविराम हो गया। उसके आगे कुछ जाने को नहीं बचता। अगर हमारी समझ की पूर्णता जगत में कहीं घटती होती, तो यह जगत कभी का जड़ हो चुका होता। अनंत काल से यह जगत है; इसमें अभी तक सभी कभी के पूर्ण हो गए होते। लेकिन इस अर्थ में पूर्णता कभी होती ही नहीं। पूर्णता घटती है। किस अर्थ में? इस अर्थ में पूर्णता घटती है कि आपको अपूर्णता का कोई भाव नहीं रह जाता; कुछ पाने जैसा नहीं रह जाता; कोई वासना नहीं रह जाती पाने की। लेकिन आपके होने का ढंग ऐसा है कि खिलता चला जाता है—निर्वासना से भरा हुआ विकास। कोई दौड़ नहीं होती, कहीं पहुंचने का कोई उतावलापन नहीं होता, कोई मंजिल नहीं होती। जैसे नदियां बहती हैं ऐसे आप भी पूर्णता से और पूर्णता की तरफ बहते चले जाते हैं। सिद्धत्व कोई जड़ता नहीं है, शाश्वत जीवंतता है। 'श्रेष्ठतम पूर्णता अपूर्णता के समान है।' इतनी ही समानता है उसकी अपूर्णता से कि उसमें विकास सदा बना रहता है। 'और इसकी उपयोगिता कभी कम नहीं होती। सर्वाधिक प्रचुरता स्वल्प की भांति है, और इसकी उपयोगिता भी कभी समाप्त नहीं होगी।' सर्वाधिक प्रचुरता स्वल्प की भांति, यह थोड़ा समझें। जिनके पास थोड़ा होता है उनको ही यह खयाल होता है कि उनके पास काफी है; जिनके पास बहुत होता है उन्हें यह खयाल कभी भी नहीं होता कि उनके पास काफी है। अज्ञानियों को ही भ्रांति पैदा हो जाती है कि वे ज्ञानी हैं; ज्ञानियों को यह भ्रांति कभी पैदा नहीं होती। दरिद्र ही अपनी संपत्ति की गणना रखते हैं; अगर सम्राट भी रखता हो गणना तो दरिद्र है, भिखारी है। गणना दरिद्र मन का लक्षण है। वह भिखारी के मन की पहचान है कि वह गिन रहा है, कितना मेरे पास है। और जितना उसके पास हो उससे सदा वह ज्यादा बतलाता है। अगर आप गरीब के घर जाएं तो गरीब अपनी गरीबी को छिपाने की सब तरफ से कोशिश करता है। पड़ोसियों से सोफा मांग लाएगा, दरी मांग लाएगा; घर को सजा लेगा। गरीब सब तरह से अपनी गरीबी को छिपाने की कोशिश करता है, और दिखलाना चाहता है कि मैं अमीर हूं। अमीर घर में जाएं तो घर जैसा है वैसा ही होगा। तो ही अमीर का घर है। अगर इंतजाम करना पड़े तो वह गरीब का ही घर है। बड़े मजे की बात है कि गरीब को सादा होने में बड़ी कठिनाई होती है, क्योंकि सादा होने में गरीबी साफ हो जाएगी। सिर्फ अमीर ही सादे हो सकते हैं। और जब तक अमीरी में सादगी न आने लगे तब तक समझना कि अभी गरीब मिटा नहीं। अमीर सादा होगा ही। दिखावे का कोई सवाल न रहा। दिखावा छिपाने का उपाय है। जिन्हें छोटा-मोटा कुछ पता है वे उसे बजाते रहते हैं। जिनके खीसे में कुछ थोड़े से फुट कर पैसे पड़े हैं, वे रास्ते पर उनको बजाते हैं। उससे ही पता चलता है कि उनके पास कुछ है। कभी आपने सोचा कि जिस चीज की आपके पास कमी होती है उसको आप ज्यादा करके दिखाते हैं। आप खुद भयभीत होते हैं, किसी को पता न चल जाए कि इतनी कम है। इसलिए ज्यादा करते हैं। लेकिन जो चीज आपके पास होती ही है, जिसका आपको भरोसा होता है, उसे आप दिखाते भी नहीं। क्योंकि उसको दिखाने का कोई प्रयोजन नहीं है। गरीब अपनी अमीरी दिखलाता है। अज्ञानी अपना ज्ञान दिखलाता है। भोगी अपना त्याग दिखलाता है। कंजूस अपना दान दिखलाता है। जो हम नहीं हैं वह हम दिखलाते हैं; जो हम हैं उसे दिखलाने का भाव ही पैदा नहीं होता। 'सर्वाधिक प्रचुरता स्वल्प की भांति है, और इसकी उपयोगिता कभी समाप्त नहीं होगी।' इतना है आपके पास कि जरा भी भय नहीं पकड़ता कि कोई सोचेगा, नहीं है। तो ज्ञानी चुप भी हो सकता है। शायद जीसस चुप रह गए पायलट के पूछने पर...। 3547/

Loading...

Page Navigation
1 ... 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444