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ताओ उपनिषद भाग ४
है। उसका आधा मस्तिष्क सोता है और आधा जगा रहता है। ऐसा रात में पाली बदलती है। फिर आधी रात के बाद दूसरी आंख बंद कर लेती है, आधा हिस्सा सो जाता है, और बाकी हिस्सा जग जाता है। सुरक्षा के लिए वह तैरती भी रहती है, क्योंकि आधा मस्तिष्क उसका जगा रहता है। और कोई हमला नहीं कर सकता, कोई दुश्मन उस पर हमला नहीं कर सकता। बड़ी कुशल मछली है। और उसका मस्तिष्क दो हिस्सों में बंटा हुआ है। एक आंख जब बंद होती है तो आधा मस्तिष्क सो जाता है, आधा जगा रहता है।
आपकी आंखें इस तरह नहीं बंटी हैं, लेकिन खोपड़ी ऐसी ही बंटी है। आप कभी पूरे नहीं सो रहे हैं। मस्तिष्क चल रहा है। बल्कि अक्सर तो यह होता है कि जब आप बिस्तर पर सोते हैं तब जिस गति से चलता है वैसा दिन भर नहीं चलता। क्योंकि दिन भर तो शरीर भी चलता है तो शक्ति शरीर में भी लगी रहती है। रात शरीर की शक्ति भी मस्तिष्क को मिल जाती है, फिर वह जोर से दौड़ता है। फिर वह हजारों मील की यात्राएं करता है, अंतरिक्ष में जाता है। और न मालूम कितनी योजनाएं हैं, भविष्य है, अतीत है; वह सब करता है। और ऐसा नहीं कि आप स्वेच्छा से कर रहे हैं; आप बिलकुल विवश हैं। आप रोकना भी चाहें तो वह रुकता नहीं। आप कितना ही कहें, मत जाओ, मत दौड़ो, कोई आपकी सुनता नहीं। आपका मन भी आपका नहीं है, कोई मालकियत नहीं है।
यह जो मन की अति गति है, इसकी वजह से आप इतने उत्तप्त और अशांत हैं। लाओत्से कहता है, लेकिन अगति से गर्मी परास्त होती है।'
तो गति तो आप करना जानते हैं। ठंड लगे शरीर को तो आप गति कर लेते हैं। दौड़ सकते हैं, व्यायाम कर सकते हैं। कुछ न करेंगे तो शरीर का अपना नैसर्गिक इंतजाम है, शरीर कंपने लगेगा। और कंपन से गति पैदा हो जाएगी। और गति से ठंडक परास्त हो जाएगी।
लेकिन इससे उलटी कला भी है-वही योग है कि आप जब उत्तप्त ज्यादा हो जाएं, मन बहुत गति कर ले, शरीर बहुत गति कर ले, तो अगति में कैसे उतरना, कैसे अक्रिया में डूब जाना। सारे ध्यान की प्रक्रियाएं अगति के द्वारा मस्तिष्क की गर्मी कम करने के उपाय हैं। और जैसे-जैसे मस्तिष्क की गर्मी कम होती है और शीतलता बढ़त्ती है, वैसे-वैसे शांति बढ़ती है। शांति और शीतलता पर्यायवाची हैं-भीतर की दुनिया में। और जब पूर्ण शांति हो जाती है तो शून्यता फलित होती है।
हम कहते हैं कि शिव का निवास कैलाश पर है; वह परम शीतल स्थान है, इसलिए। आपके भीतर भी शिव का निवास कैलाश पर ही है। लेकिन कैलाश जैसी शीतलता आपके भीतर पैदा होगी तब आपको भीतर के शिवत्व का कोई अनुभव होगा। भीतर कैलाश निर्मित हो जाता है। इतनी शीतलता हो जाती है। लेकिन अगति चाहिए; मस्तिष्क का कोई भी तंतु गति न करता हो, कंपित न होता हो। सब ठहर जाए। और एक बार आपको खयाल में आना शुरू हो जाए कि अक्रिया कैसे शीतलता लाती है तो फिर आप उस शीतलता के सूत्र को पकड़ कर उसको ही साधते चले जाएं। क्रमशः सूक्ष्म से सूक्ष्म, गहरे से गहरे में उतरना होने लगेगा। और आप अपने भीतर ही पाएंगे कि सीढ़ियां दर सीढ़ियां कैलाश तक जाने का उपाय है।
एक काम करें। जैसा मैंने कहा पीछे, एक घंटा अक्रिया में उतरना शुरू कर दें। अक्रिया में उतरने के लिए उपयोगी होगा कि शरीर भी बिलकुल निष्क्रिय हो, क्योंकि शरीर और मन जुड़े हैं। और जब शरीर गति करता है तो मन भी गति करता है। जब मन गति करता है तो शरीर भी गति करता है। जो कुछ मन में होता है वह शरीर में भी प्रतिफलित होता है। और जो कुछ शरीर में होता है वह मन में प्रतिफलित होता है। तो पहले तो बैठ जाएं, अगर सिद्धासन में बैठ सकते हों तो बहुत अच्छा है। लेकिन अनिवार्यता नहीं है। उसमें अड़चन मालूम हो तो आरामकुर्सी पर बैठ जाएं। महत्वपूर्ण इतना है कि शरीर बिलकुल शिथिल छोड़ दें।
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