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सारा जगत ताओ का प्रवाह है
परमात्मा जीवन का परम नियम है। जब आप प्रतिकूल चलते हैं, आप दुख अपने लिए पैदा कर लेते हैं; जब आप अनुकूल चलते हैं तब आप अपने लिए सुख पैदा कर लेते हैं। जब आपको सुख मिले तब आप समझना कि आप किसी न किसी कारण अनुकूल हैं; और जब आपको दुख मिले तो आप समझना कि आप किसी न किसी कारण प्रतिकूल हैं।
- अगर आदमी सिर्फ सुखवादी भी हो जाए तो परमात्मा तक पहुंच जाए। लेकिन हम दुखवादी हैं। अगर आप अपने सुख को भी पहचानने लगे कि कब आपको सुख मिलता है, क्यों मिलता है; कैसी अवस्था होती है जब सुख मिलता है; आपके भीतर क्या होता है जिससे आप सुख के साथ ट्यून हो जाते हैं; अगर इतना भी आप समझ लें तो आपको कोई शास्त्र की जरूरत नहीं है, किसी गुरु की जरूरत नहीं है। सुख महागुरु है। आप सुख के सूत्र को पकड़ कर ही खोजते रहें, थोड़े दिन में ही आपको वह कुंजी हाथ में आ जाएगी जहां से आप परमात्मा को खोल लेंगे।
लेकिन आप दुखवादी हैं। आपको इसकी भी होश नहीं है जरा कि कब आपको सुख मिलता है, क्यों मिलता है, कहां से आता है, कैसी भाव-दशा होती है जब आपके भीतर सुख झलक आता है, कैसी आपके हृदय की धड़कन होती है, कैसी आपकी श्वास होती है, आप किस मुद्रा में होते हैं जब सुख आपके पास निकट आ जाता है, और आप किस मुद्रा में होते हैं जब सुख आपसे दूर छिटक जाता है।
अगर आप अपने सुख को ही पहचानने लगें तो काम पूरा हो गया। वही सुख की पहचान आपको पास लाने लगेगी। क्योंकि नियम केवल इतना ही है : जब भी आप उसके अनुकूल होते हैं, क्षण भर को भी, कभी-कभी तो दुर्घटना के कारण आप उसके अनुकूल हो जाते हैं। क्योंकि आप जैसे हैं आप प्रतिकूल ही चलते जाते हैं; कभी-कभी दुर्घटना के कारण, कभी-कभी संयोगवश, कभी आपने नहीं सोचा था तो भी, आप अनुकूल हो जाते हैं-अनुकूल होते ही झरोखा खुल जाता है और एक हवा, ठंडी हवा और नई ताजी हवा आपके भीतर भर जाती है। मगर आप अपनी पुरानी आदतों से ऐसे ग्रस्त हैं कि आप पहचान नहीं पाते। आप फिर सम्हल कर दुर्घटना के बाहर होकर अपने पुराने रास्ते पर चलने लगते हैं।
लोग कहते हैं, सुख क्षणिक है। इस कारण नहीं कि सुख क्षणिक है। इस कारण कि आपकी आदतें दुख की हैं। और दुख बहुत लंबा है। इसलिए नहीं कि दुख लंबा है; आप बड़े कुशल हैं। आप दुख पैदा करने में ऐसे कुशल हैं कि सुख की कैसी ही अवस्था हो, आप उसमें से दुख पैदा कर लेंगे।
सना है मैंने, मुल्ला नसरुद्दीन ज्यादा बीमार था। तो उसके चिकित्सकों ने उसे पहाड़ भेजा। पहाड़ से पांच-सात दिन बाद ही उसका तार आया अपने चिकित्सक के नामः आई एम फीलिंग वंडरफुल; व्हाई? मैं बहुत आनंद में हं: क्यों? इसका जवाब चाहता है वह।
आपको भरोसा भी नहीं आता जब आप सुख में होते हैं। आप भी पूछते हैं, कुछ गड़बड़ हो गई? क्या बात है, मैं और सुख में? यह हो ही नहीं सकता। दुख में आप बिलकुल तृप्त होते हैं। दुख में आप चलते हैं कि बिलकुल ठीक। रास्ता जाना-माना, सब पहचाना हुआ। यहां आप ठीक से यात्रा करते हैं। सुख में आप बिलकुल विचलित हो जाते हैं, आपकी समझ में नहीं आता। और जब तक आप दुख न बना लें...।
सुना है मैंने कि एक आदमी बहुत ज्यादा चिंतित, परेशान और हमेशा उलझा-उलझा और उदास रहता था। सलाह ली उसने, किसी मनोवैज्ञानिक को पूछा कि क्या करूं? तो उसने कहा कि तुम गलत पहलू देखते हो जिंदगी का, अंधेरा पहलू देखते हो; उजाला पहलू देखो। जिंदगी में रात ही रात नहीं है; दिन भी है। और कांटे ही कांटे नहीं हैं; फूल भी हैं। तुम जरा फूलों पर नजर ले जाओ। तुम्हारा जो पेसिमिज्म है, यह जो दुखवाद है, इसको छोड़ो। तुम ऑप्टिमिस्ट हो जाओ; तुम आशावादी हो जाओ। तो उस आदमी ने कहा, अच्छा, मैं कोशिश करूंगा।
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