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अस्तित्व अबस्तित्व से घिरा है
था कि मन कहता था कि उधर क्या, इस तरफ ज्यादा ठीक होगा। कहते हैं, वह पौराणिक गधा बीच में ही खड़ा-खड़ा मर गया। भूख जान ले ली। ढेरी पास थीं, भोजन दूर नहीं था; लेकिन गधे की मध्यम वृत्ति जानलेवा हो गई।
हममें से अधिक लोग मध्य से उलझ जाते हैं। ठीक भी लगता है कि ठीक है, बात तो ठीक है; और फिर हम पच्चीस और कारण भी खोज लेते हैं जिनसे लगता है : होगी ठीक, लेकिन अपने लिए नहीं। . मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं, आपकी बात तो ठीक लगती है, लेकिन...।
मैं कहता हूं, फिर लेकिन मत उठाओ। या तो कहो, आपकी बात ठीक नहीं लगती, तो कोई रास्ता बने, तो मैं आपको समझाऊं। तो समझाने का भी उपाय आपने समाप्त कर दिया। कहते हैं, बात ठीक लगती है; अब समझाने को कुछ बचा नहीं। और फिर कहते हैं लेकिन। तो फिर लेकिन मत कहो। वह लेकिन हमारे साथ अटका हुआ है। वह लेकिन हमारे प्राण में तीर की तरह छिदा है। उसकी वजह से हम हिल नहीं पाते। या तो किसी चीज को साफ-साफ समझना कि गलत है, तो उससे छुटकारा हो गया। या साफ-साफ समझ लेना कि ठीक है, तो उसमें छुटकारा हो जाए। लेकिन हम दोनों के बीच में खड़े हैं। वर्षों तक लोग सुनते रहते हैं। धीरे-धीरे सुनने के आदी हो जाते हैं। उनको वहम होने लगता है, समझते भी हैं; और जीवन में कहीं कोई क्रांति नहीं होती।
लाओत्से कहता है, जब मध्यम प्रकार के लोग सत्य को सुनते हैं तो वे उसे जानते से भी लगते हैं और नहीं जानते से भी। जैसे अर्ध-निद्रा और अर्ध-जाग्रत; जैसे करवट बदली है नींद में, थोड़ा सा होश आता है और फिर करवट बदल कर आदमी सो जाता है। करवट आदमी बदलता ही सोने के लिए है। वह जो बीच में थोड़ा सा होश आता है वह अड़चन की वजह से आता है। शरीर को अड़चन होती है करवट बदलने में, नींद थोड़ी सी टूटती लगती है, और फिर गहरी नींद लग जाती है। और हमारे भीतर मन की संभावना है कि हम सपने में भी सपना देख सकते हैं कि हम जाग गए। आपने सबने ऐसे सपने देखे होंगे जिनमें आप सपने में देख रहे हैं कि आप जाग गए। सपने के भीतर भी सपना देखा जा सकता है। और जो बहुत कल्पनाशील हैं वे तो सपने के भीतर सपना, सपने के भीतर सपना, सपने के भीतर सपना देख सकते हैं। वे तो देख सकते हैं सपने में कि बिस्तर पर जा रहे हैं सोने के लिए, सो गए, नींद लग गई–सपने में। अब नींद में सपना देख रहे हैं कि बिस्तर पर सोने को जा रहे हैं। ऐसा वह तो डब्बे के भीतर डब्बा, उसके भीतर डब्बा, ऐसा कर सकते हैं। हममें से बहुत से लोग इसी तरह कर रहे हैं। लगता है, जाग गए . हैं। सो रहे हैं। तो एक अर्ध-निद्रा, अर्ध-जाग्रत की अवस्था बन जाती है।
इसे तोड़ना जरूरी है। या तो ठीक से सो ही जाएं; तो कम से कम यह बेचैनी मिटे। धर्म को भूलें, सत्य को भूलें, यह परमात्मा की, परलोक की बातें, इनकों भूलें। ठीक से सो जाएं संसार में। तो कम से कम दुकान तो ठीक से चले, जगत तो ठीक से चले। लेकिन इनकी वजह से वह भी चल नहीं पाता। बैठे दुकान पर हैं और माला हाथ में भी है। अब वह माला दुकान में भी बाधा डालती है और दुकान माला में बाधा डालती है। कुछ भी ठीक से नहीं चल पाता, सब गड़बड़ हो जाता है। जैसे एक आदमी ने अपनी बैलगाड़ी में सब तरफ बैल बांध लिए हों; पूरब भी बैल जा रहे, पश्चिम भी बैल जा रहे, दक्षिण भी, उत्तर भी। और बैलगाड़ी मरी जा रही है। उसके अस्थिपंजर ढीले हुए जा रहे हैं। क्योंकि कहीं जाना नहीं हो सकता है। एक ही यात्रा हो सकती है।
बहुत स्पष्ट हो जाना जरूरी है कि अगर कोई चीज सत्य लगती हो तो आप खतरे में उतर रहे हैं। इसको कहने के पहले कि मैं समझ गया तीन बार सोच लेना चाहिए कि मैं समझ गया? अगर नहीं समझा हूं तो बेहतर है यह समझना कि अभी नहीं समझा हूँ। तो आप साफ होंगे, एक क्लैरिटी होगी; जीवन में एक व्यवस्था होगी। अगर समझ गए हैं तो साफ समझ लें कि समझ गया हूं। तो भी जीवन में एक गति होगी, विकास होगा। लेकिन मध्य में खड़े रहना बहुत खतरनाक है।
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