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ताओ उपनिषद भाग ४
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बुद्ध कहते हैं, तू खुश हो, कम से कम एक कोस से ज्यादा तो नहीं बढ़ता गांव । इतना भी क्या कम है कि अपना एक कोस ठहरा हुआ है, उससे ज्यादा नहीं हो रहा। हमने जितना था उससे खोया नहीं है, इतना पक्का है। हम जहां थे कम से कम वहीं थिर हैं; वहां से पीछे नहीं हटे। और ये लोग भले लोग हैं। ये प्रेमवश कहते हैं एक कोस, ताकि तुम चल सको । और बुद्ध ने कहा, मेरी खुद की हालत तुम्हारे साथ यही है। तुम मुझसे पूछते हो, कितनी दूर है बोध ? कितनी दूर है बुद्धत्व ? मैं कहता हूं, एक कोस । तुम एक कोस चल कर फिर पूछते हो; मैं कहता हूं, एक कोस। यह लंबी यात्रा है; यह अनंत यात्रा है; अनंत जन्म लग जाते हैं। ये भले लोग हैं। ये तुम्हारे चेहरे की थकान देख कर एक कोस कहते हैं। एक कोस से इनका कोई लेना-देना नहीं है। ये दयावान हैं।
अच्छा था, पुराने दिनों में सड़क के किनारे पत्थर नहीं थे। क्योंकि पत्थर आपका चेहरा नहीं देख सकते; पत्थर कठोर हैं; जितनी दूरी है उतनी ही कह देंगे― चाहे यात्री थक कर वहीं गिर पड़े, घबड़ा जाए।
एक-एक कोस करके हजार कोस भी पूरे हो जाते हैं। लेकिन काफी समय लगता है। क्योंकि जितनी महा प्रतिभा की खोज हो उतनी ही प्रौढ़ता में समय लगता है। इसे जरा ऐसा समझें । वैज्ञानिक इसे स्वीकार करने लगे हैं अब, एक दूसरी दिशा से ।
आपने देखा, आदमी अकेला प्राणी है जिसको प्रौढ़ होने में बहुत समय लगता है। कुत्ते का बच्चा पैदा होता है; कितनी देर लगती है प्रौढ़ होने में? घोड़े का बच्चा पैदा होता है; कितनी देर लगती है प्रौढ़ होने में ? घोड़े का बच्चा पैदा होते से ही चलने और दौड़ने लग सकता है। प्रौढ़ हो गया। प्रौढ़ पैदा होता है। सिर्फ आदमी का बच्चा असहाय पैदा होता है। उसको प्रौढ़ होने में बीस-पच्चीस वर्ष लग जाते हैं । पच्चीस वर्ष का हो जाता है तब भी मां-बाप जरा डरे रहते हैं कि अभी चल सकता है अपने पैर से कि नहीं। इतना लंबा समय मनुष्य को क्यों लगता है। प्रौढ़ होने में? अगर आदमी के बच्चे को असहाय छोड़ दिया जाए वह मर जाएगा, बच नहीं सकता। बाकी पशुओं के बच्चे बच जाएंगे। क्योंकि वे पैदा होते ही काफी प्रौढ़ हैं। आदमी भर अप्रौढ़ पैदा होता है। क्योंकि आदमी के पास बड़ी प्रतिभा की संभावना है। उस प्रतिभा को प्रौढ़ होने में समय लगता है। घोड़े के बच्चे के पास प्रतिभा की बड़ी संभावना नहीं है; प्रौढ़ होने में कोई समय नहीं लगता ।
वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर आदमी की उम्र बढ़ाई गई, बढ़ जाएगी, तो हमारा बचपन भी लंबा होने लगेगा। लेकिन उस लंबे बचपन के साथ ही आदमी की प्रतिभा भी बढ़ने लगेगी। अगर समझें कि सौ साल आदमी की औसत उम्र हो जाए तो फिर इक्कीस वर्ष में बच्चा जवान नहीं होगा, प्रौढ़ नहीं होगा। फिर वह पचास-साठ वर्ष में प्रौढ़ता के करीब आएगा। युनिवर्सिटी से जब निकलेगा तो साठ वर्ष के करीब शिक्षित होकर बाहर आएगा। लेकिन तब मनुष्य की प्रतिभा बड़े ऊंचे शिखर छू लेगी। स्वभावतः ! क्योंकि प्रौढ़ होने के लिए जितना समय मिलता है उतना ही प्रतिभा पकती है ।
ध्यान तो प्रतिभा की अंतिम अवस्था है। एक जन्म काफी नहीं है; अनेक जन्म लग जाते हैं, तब प्रतिभा पकती है । और कोई व्यक्ति अनंत जन्मों तक अगर सतत प्रयास करे तो ही । अन्यथा कई बार प्रयास छूट जाता है; अंतराल आ जाते हैं; जो पाया था वह भी खो जाता है, भटक जाता है; फिर-फिर पाना होता है। अगर सतत प्रयास चलता रहे तो अनंत जन्म लगते हैं, तब समाधि उपलब्ध होती है।
इससे घबड़ा मत जाना, इससे बैठ मत जाना पत्थर के किनारे कि अब क्या होगा। अनंत जन्मों से आप चल ही रहे हो; घबड़ाने की कोई जरूरत नहीं है। हो सकता है, आ गया हो वक्त। तो जब कोई कहता है एक ही कोस दूर तो हो सकता है आपके लिए एक ही कोस बचा हो। क्योंकि कोई आज की यात्रा नहीं है; अनंत जन्म से आप चल रहे हैं। इस क्षण भी ध्यान घटित हो सकता है अगर पीछे की परिपक्वता साथ हो, अगर पीछे कुछ किया हो ।