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ताओ सब से परे है
व्यर्थ गया। वह सिर्फ भूखा मरा। क्योंकि उसे उपवास अभी आया ही नहीं। उपवास का अर्थ ही यह है कि भोजन का खयाल न हो। भोजन पेट में डालने से भी ज्यादा, भोजन खयाल में न डाला जाए तो उपवास हुआ।
अकेले होने का अर्थ है, दूसरे का कोई विचार न हो। अकेले होने में मौज हो, प्रसन्नता हो; दीनता न हो। लेकिन अकेले होने से सभी डरते हैं। और सभी अकेले हैं। इसलिए सभी भयभीत हैं। क्योंकि जिस सत्य से हम छुट नहीं सकते, उस सत्य से हम भयभीत हैं। हर आदमी अकेला है। अकेला ही पैदा होता है; अकेला ही जीता है। भ्रम पैदा करता है कि कोई साथ है। लेकिन कोई किसी के साथ हो नहीं सकता। सब साथ काल्पनिक है।
और दूसरा सोच रहा है आप उसके साथ हैं, और आप सोच रहे हैं कि दूसरा मेरे साथ है। न आपको चिंता है दूसरे को साथ देने की; न दूसरे को चिंता है आपको साथ देने की। एक-दूसरे का शोषण है। दूसरे की मौजूदगी से आपको लगता है ठीक है, भरा-पूरा लगता है, अकेला नहीं हूं। लेकिन अकेला होना एक सत्य है। और जब तक हम अकेले होने की क्षमता न जुटा लें तब तक हम अपने स्वभाव से परिचित न हो सकेंगे। अकेले ही नहीं हो सकते तो स्वयं को कैसे हम जानेंगे? अकेले होने की तैयारी चाहिए-चाहे कितना ही भय मालूम हो, असुरक्षा मालूम हो। चाहे कितना ही मन करे कि साथ खोज लो, तो भी अकेले होने का साहस करना चाहिए। __ अब यह बड़े मजे की घटना दुनिया में घटती है। हम जो कुछ भी खोज करते हैं, उस सब खोज के अंतिम परिणाम में हम अकेले हो जाते हैं। एक आदमी धन की तलाश करता है, और अकेले होने से डरता है। और जितना ज्यादा धन उसके पास होने लगेगा उतना ही समाज उसका छोटा होने लगेगा। अब वह सभी से नहीं मिल सकेगा। अब वह उन थोड़े से लोगों से मिल सकेगा जो उसके स्टेटस, उसकी हैसियत के हैं। और वह धन इकट्ठा करता जा रहा है। लोगों को पीछे छोड़ता जा रहा है। एक घड़ी आएगी जब वह अकेला हो जाएगा; जब उसकी स्टेटस का, उसकी हैसियत का कोई भी न होगा। इसी के लिए जीवन भर उसने कोशिश की कि मैं आखिरी शिखर पर पहुंच जाऊं, गौरीशंकर पर खड़ा हो जाऊं। और जब वह गौरीशंकर पर खड़ा हो जाएगा तब हार्ट अटैक हो जाएगा। क्योंकि वह बिलकुल अकेला हो जाएगा। अब कोई संगी-साथी न रहा।
राजनीतिज्ञ उस मुसीबत में पड़ जाते हैं। यात्रा करते-करते जब वे चोटी पर पहुंच जाते हैं तब अचानक पाते हैं कि बिलकुल अकेले हो गए; उनका कोई संगी-साथी नहीं है। धन की खोज हो कि पद की खोज हो! बड़े विचारक, बड़े वैज्ञानिक इस हालत में पहुंच जाते हैं। क्योंकि आइंस्टीन को लगता है, किससे बात करे! क्योंकि उसकी भाषा भी कोई नहीं समझेगा। पत्नी है जरूर, लेकिन फासल्ने बहुत हो गए। आइंस्टीन आइंस्टीन रह कर अपनी पत्नी से भी बात नहीं कर सकता।
विलहेम रेक की पत्नी के मैं संस्मरण पढ़ता था। विलहेम रेक फ्रायड के बाद एक बहुत क्रांतिकारी, कीमती मनोवैज्ञानिक हुआ। उसकी पत्नी ने लिखा है कि मैं रेक को कुछ भी समझ नहीं पाई। यह आदमी पागल था कि प्रतिभाशाली था, ठीक था कि गलत था, कुछ भी कहना मुश्किल है। विशिष्ट था, इतना ही कहा जा सकता है, कुछ विशेष था। और कोई संबंध नहीं हो सकते। पहली पत्नी ने तलाक दिया, फिर दूसरी पत्नी ने छोड़ा। संबंध नहीं बन पाते। क्योंकि जिस जगत में वह विचर रहा है वहां वह बिलकुल अकेला है।
सभी बड़े विचारक उस हालत में पहुंच जाते हैं जहां उन्हें लगता है, कोई उनका संगी-साथी नहीं। एक अकेलापन अनुभव होता है। यह बड़ी हैरानी की बात है कि जिनको पागल होना चाहिए वे तो पागल नहीं होते-निक्सन पागल नहीं होते, माओ पागल नहीं होते, हिटलर पागल नहीं होता—जिनको कि पागल होना चाहिए। लेकिन बड़े विचारक, विलहेम रेक पागल हो जाता है, पागलखाने में मरता है। ऐसी ऊंचाई पर खड़े हो जाने की घटना घट जाती है मन में जहां से किसी से कोई संबंध नहीं रहा। फिर घबड़ाहट होती है। और इसी की खोज थी।
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