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ताओ उपनिषद भाग ४
ME में हैं; तब तक कुछ
कि घणा करता है,
हो तो उसका परिणा
आप कहीं भी पहुंच जाएं, अगर आप ठीक से चलते ही गए तो अकेले हो जाएंगे। अगर आपने ठीक प्रतिस्पर्धा की, प्रतियोगिता की और संघर्ष किया तो ज्यादा से ज्यादा इतनी बात में आप सफल हो सकेंगे, एक दिन आप अचानक पाएंगे आप अकेले हैं; अब कोई प्रतियोगी नहीं बचा। और तब आप घबड़ा जाते हैं। इसलिए सभी सफलताएं अंत में असफलताएं सिद्ध होती हैं। क्योंकि अकेला कोई होना नहीं चाहता। जब तक आप सफल नहीं हुए हैं तब तक आप भीड़-भाड़ में हैं; तब तक कुछ करने को बाकी है।
लाओत्से कहता है, अकेले होने से मनुष्य सर्वाधिक घृणा करता है, अयोग्य होने से बड़ी घृणा करता है। लेकिन लाओत्से कहता है, तुम्हारी योग्यता का मतलब क्या है? और जब तुम योग्य होते हो तो उसका परिणाम क्या है? लाओत्से का बड़ा अदभुत खयाल है योग्यता के बाबत। वह कहता है, योग्यता का कुल मतलब इतना है कि लोग तुम्हें साधन की तरह उपयोग करेंगे, अगर तुम योग्य हो।
बाप अपने योग्य बेटे से बड़ा प्रसन्न होता है। क्योंकि बाप जो-जो महत्वाकांक्षाएं पूरी नहीं कर पाया वे इस बेटे के कंधे पर सवार कर देगा। यह योग्य बेटा है, यह पूरी करेगा। जिस नासमझी में उसने अपनी जिंदगी गंवाई और वे अधूरी रह गईं नासमझियां; यह योग्य बेटा उनको पूरी करेगा। योग्य पति से पत्नी बड़ी प्रसन्न होती है। और कुल ' परिणाम क्या होगा इस योग्य पति का कि यह धन को बढ़ाता चला जाएगा।
एंड कार्नेगी ने कहीं कहा है। किसी ने उससे पूछा कि तुम इतना धन कैसे इकट्ठा कर पाए? दस अरब रुपया वह छोड़ कर मरा। तो उसने कहा कि मैं इकट्ठा कर पाया, कहना मुश्किल है। मैं सिर्फ यह देखना चाहता था कि क्या मैं इतना धन भी इकट्ठा कर सकता हूं जो मेरी पत्नी खर्च न कर सके! मैं सिर्फ एक साधन था। मगर मैं यह देखना चाहता था कि क्या यह हो सकता है कि मैं उस जगह पहुंच जाऊं, इतना धन कमा लूं कि मेरी पत्नी खर्च न कर सके! लेकिन पत्नी खर्च कर रही है। पति योग्य है। वह दौड़ाए चली जा रही है।
योग्यता का कुल परिणाम इतना होता है कि आपका शोषण होगा। और क्या होगा? जितने ज्यादा योग्य होंगे, उतने ज्यादा लोग आपका शोषण करेंगे। लाओत्से बहुत अनूठा है, वह कहता है कि तुम योग्य बनने की कोशिश में मत पड़ना। लाओत्से कहता है, अयोग्य अक्सर बच जाते हैं उपद्रव से, योग्य पिस जाते हैं। लेकिन संसार कहता है, योग्य बनो! क्योंकि संसार शोषण करना चाहता है।
कुशल बनो। संसार निंदा करता है अयोग्य की; योग्य की प्रशंसा करता है। लेकिन संसार उसी की प्रशंसा करेगा जो बलि का बकरा होने को है। और सभी लोग भयभीत हैं कि अयोग्य न हो जाएं। क्यों भयभीत हैं? क्योंकि अयोग्य को संसार प्रतिष्ठा नहीं देता; अहंकार की तृप्ति नहीं देता। और क्या भय है? अयोग्य को यही भय है कि अगर कोई कह दे कि तुम अयोग्य हो तो कोई मूल्य न रहा, कोई कीमत न रही। बाजार में कोई मूल्य न हो तो आदमी को लगता है मैं निर्मूल्य हो गया।
लेकिन लाओत्से कहता है, तुम कोई वस्तु नहीं हो कि तुम्हारा मूल्य होना चाहिए। और अगर योग्य होकर तुम्हारा कोई मूल्य है तो तुम्हारा मूल्य नहीं है, किसी और चीज का मूल्य है जो तुमसे पैदा हो रही है। तुम्हारा मूल्य तो तभी हो सकता है जब तुम बिलकुल योग्य नहीं हो, फिर भी तुम्हारा कोई मूल्य है। सिर्फ तुम्हारा होने का मूल्य है; तुम हो। इसे थोड़ा समझें।।
आप अपने बेटे को प्रेम करते हैं, क्योंकि योग्य है। और अगर योग्य नहीं है तो प्रेम नहीं करते। आपका बेटे से प्रेम है? या बेटे से कुछ आप उपाय लेना चाहते हैं, कुछ काम लेना चाहते हैं, कोई साधन पूरा करना चाहते हैं? तो बेटा एक उपकरण है, एक मीन्स है, साध्य नहीं है। बेटा साध्य अगर हो तो उसकी योग्यता-अयोग्यता अर्थ नहीं रखती। फिर उसका होना, उसका बीइंग, उसका अस्तित्व मूल्यवान है। आप प्रसन्न हैं, क्योंकि वह है। उसका होना काफी है।
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