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ताओ उपनिषद भाग ४
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तो फिर मैंने कहा, रो! छाती पीट, लोट! बेहोशी में जो-जो हो रहा है, वह संकेत है। तो हिस्टीरिया में जो-जो हो रहा है, नोट करवा ले दूसरों से, और वही तू होशपूर्वक कर; हिस्टीरिया विदा हो जाएगा।
एक सप्ताह में हिस्टीरिया विदा हो गया। स्त्री स्वस्थ है। और अब उसके चेहरे पर सच्चा बल है—प्रेम का, पीड़ा का। अब एक सहजता है। इसके पहले उसके पास जो चेहरा था वह फौलादी मालूम पड़ता था, लोहे का बना हो। लेकिन वह निर्बलता का सूचक है। क्योंकि चेहरे को फौलाद का होने की जरूरत भी नहीं है। फौलाद का चेहरा उन्हीं के पास होता है जिनको अपने असली चेहरे को प्रकट करने में भय है। तो वे एक चेहरा ओढ़ लेते हैं; उस चेहरे के पीछे से वे ताकतवर मालूम होते हैं। आप भी लोहे का एक चेहरा पहन कर लगा लें। तो दूसरों को डराने के काम आ जाएगा। और लोग कहेंगे, हां, आदमी है यह। लेकिन भीतर? भीतर आप हैं जो कंप रहे हैं, भय से घबरा रहे हैं। उसी के कारण तो चेहरा ओढ़ा हुआ है।
वह लोहे की फौलाद तो गिर गई, उसके साथ हिस्टीरिया भी गिर गया। आंसुओं के साथ, वह सब जो झूठा था, बह गया। रुदन में, वह सब जो कृत्रिम था, जल गया, समाप्त हो गया। अब उस स्त्री का अपना चेहरा प्रकट हुआ। लेकिन इसके पहले जो उसे शक्तिशाली कहते थे, अब कहते हैं, साधारण है; जैसी सभी स्त्रियां होती हैं, . निर्बल है। वे जो उसे शक्तिशाली कहते थे, अब उसे शक्तिशाली नहीं कहते। लेकिन उनके शक्तिशाली कहने से हिस्टीरिया पैदा हुआ था, इसका उन्हें कोई भी बोध नहीं है।
लाओत्से कहता है, ठोस चरित्र दुर्बल दिखता है। क्योंकि ठोस चरित्र सहज होता है। ठोस चरित्र इतना आश्वस्त होता है अपने प्रति कि सहज-स्फूर्त होता है, स्पांटेनियस होता है। कृत्रिम नहीं होता, कोई सुरक्षा का उपाय नहीं होता, सहज धारा होती है।
देखें, हम किनको शक्तिशाली कहते हैं? लोकमान्य तिलक के जीवन में मैंने पढ़ा है। पत्नी मर गई। तो वे अपने दफ्तर में काम करते थे, केसरी के दफ्तर में काम करते थे। तो जब खबर पहुंची कि पत्नी की मृत्यु हो गई तो उन्होंने लौट कर घड़ी की तरफ देखा और उन्होंने कहा, अभी तो मेरे दफ्तर से उठने का समय नहीं हुआ। तो जिस व्यक्ति ने यह घटना लिखी है उसने लिखा है कि इसको कहते हैं ठोस चरित्र! फौलाद!
मगर मेरे सोचने के ढंग उलटे हैं। यह फौलाद नहीं है, यह कृत्रिम चेहरा है, जो खतरनाक है। क्योंकि जो आदमी घड़ी को ज्यादा मूल्य दे रहा है प्रेम से, दफ्तर को ज्यादा मूल्य दे रहा है पत्नी से, इस आदमी ने अपने व्यक्तित्व की जो सहजता है, उसको दबा लिया है। जब कर्तव्य बड़ा हो जाए प्रेम से तो समझना कि असली आदमी दब गया और नकली आदमी ऊपर आ गया। लेकिन यह बात कोई और नहीं कहेगा। क्योंकि सारी दुनिया में ड्यूटी, कर्तव्य महान चीज है। और जो आदमी प्रेम की भी कुर्बानी दे दे कर्तव्य के लिए, उसको हम कहेंगे-शहीद है! इसको कहते हैं कर्तव्य! सेवा! राष्ट्र!
लेकिन जिसके हृदय में प्रेम की सहज स्फुरणा न हो उसका सारा व्यक्तित्व जड़ हो जाएगा, सूख जाएगा। और जिसके मन में प्रेम की स्फुरणा न हो उसके मन में बाकी कोई स्फुरणा नहीं हो सकती। हम सैनिक को तैयार करते हैं इस तरह से कि वह बिलकुल लोहे का आदमी हो जाए। और जरूरत है सैनिक की कि वह लोहे का आदमी हो; क्योंकि उसे जो काम करने हैं, वह अगर उसके पास हृदय हो तो वह नहीं कर पाएगा। इसलिए सैनिक को हम कर्तव्य सिखाते हैं, सेवा सिखाते हैं, आज्ञा सिखाते हैं। और हमने सैनिक को लक्ष्य बना लिया है बहुत जीवन के हिस्सों में, और हम हर आदमी को चाहते हैं कि वह सैनिक जैसा हो, सहज न हो। क्योंकि सारा जीवन संघर्ष है और युद्ध है।
लोकमान्य के जीवन में अगर ऐसी घटना घटी हो तो उसका मतलब यह है कि जो लोग प्रशंसा कर रहे हैं वे लोकमान्य के सैनिक की प्रशंसा कर रहे हैं। उनका कुछ लक्ष्य है। क्योंकि उनको लोकमान्य को, और लोकमान्य जैसे
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