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ताओ उपनिषद भाग ४
बात बुद्धि से, वह जीवन में काम नहीं आएगी। इतना काफी नहीं है जीवन में आने के लिए। क्योंकि जीवन बुद्धि से नहीं चलता। जीवन बुद्धि से ज्यादा बड़ा है। वहां हृदय भी है, वहां शरीर भी है, वहां छिपी हुई अंतर्निहित वासनाएं भी हैं। वहां सिर्फ सिर होता तो बात खत्म थी। अगर आप सिर्फ सिर की तरह आए होते या आपका सिर ही आया होता यहां, तो आप बिलकुल बदल कर जाते। लेकिन सिर के अलावा और चीजें भी हैं।
आपने सुनी ब्रह्मचर्य की बात; बिलकुल ठीक लगी, लगा कि सुखद है। लेकिन वह कामवासना का बिंदु भी आपके भीतर है। वह बलवान है, वह कुछ इतना आसान नहीं है कि आपकी खोपड़ी ने मान लिया तो आपकी जननेंद्रिय भी मान लेगी। इतना आसान नहीं है। खोपड़ी की वह फिक्र ही नहीं करती। खोपड़ी क्या कहती है, उससे उसको कोई संबंध नहीं है। उसका अपना जीवन है, अपनी धारा है, अपना वेग है, अपनी शक्ति है। और वह शक्ति खोपड़ी से नहीं मिलती, वह हार्मोन से मिलती है, खून से मिलती है, भोजन से मिलती है। उसके हजार दूसरे रास्ते हैं। सिर से उसका कुछ लेना-देना नहीं है। सिर से आप जननेंद्रिय को संचालित नहीं कर सकते। जब आप चाहें कि जमनेंद्रिय वासना से भर जाए, नहीं भरेगी। और जब आप नहीं चाहते, तब आप अचानक पाएंगे कि वासनाग्रस्त है।
_इसलिए कपड़े आदमी को खोजने पड़े। क्योंकि चेहरे को तो आप झुठला सकते हैं, जननेंद्रिय को आप झुठला नहीं सकते। आप नग्न चले जा रहे हैं, तो आप झठला नहीं सकते, आपकी असलियत जाहिर हो जाएगी।
आंखें आप झुठला सकते हैं। एक सुंदर स्त्री सड़क पर दिखती है, आप दूसरी तरफ देख सकते हैं, अखबार पढ़ सकते हैं। हालांकि अखबार पढ़ने में भी वही दिखाई पड़ेगी; दूसरी तरफ देखने में भी आंखें उसी तरफ लगी रहेंगी, लेकिन आप झठला सकते हैं। उसके पास से गुजर कर आप कह सकते हैं, माताजी, नमस्कार। आप कुछ उपाय कर सकते हैं। लेकिन अगर आप नग्न खड़े हैं, क्या होगा? जननेंद्रिय धोखा दे देगी, असलियत जाहिर कर देगी। आप कुछ भी न कर पाएंगे। कपड़े की ईजाद आदमी को करनी पड़ी, क्योंकि शरीर असली खबर दे सकता है। वह बुद्धि की सुनता नहीं।
इसलिए एक बहुत अजीब घटना घटी है अमरीका में, जहां नग्न क्लब स्थापित हो गए हैं। तो वहां एक अनूठी बात आई खयाल में। नग्न क्लब स्थापित होने के पहले मनोवैज्ञानिक सोचते थे कि स्त्रियां ज्यादा बाधा डालेंगी नग्न होने में। हालत उलटी पाई गई। पुरुष ज्यादा बाधा डालते हैं। स्त्रियां बड़ी सरलता से नग्न हो जाती हैं; पुरुष बहुत दिक्कत अनुभव करता है। क्योंकि पुरुष की जननेंद्रिय उसकी वासना को शीघ्रता से प्रकट करती है। स्त्री की जननेंद्रिय के प्रकट होने का कोई बाहर उपाय नहीं है। स्त्रियां सरलता से नग्न हो जाती हैं, उनको ज्यादा झंझट नहीं होती। लेकिन पुरुष को बड़ी झंझट होती है। क्योंकि उसे डर लगता है कि उसकी सारी प्रतिमा नष्ट हो सकती है एक क्षण में, और वह कुछ भी न कर पाएगा।
तो जब आप सुनते हैं तो सिर्फ सिर से सुनते हैं। लेकिन आप सिर से ज्यादा हैं; सिर कुछ भी नहीं है। उससे बहुत बड़ा हिस्सा आपके व्यक्तित्व का है। शरीर है, वासनाएं हैं, ऊर्जाएं हैं, जिनके अपने ढंग हैं काम करने के। तो आप सुन कर चले गए। जब आप सुन रहे थे तब आप सिर्फ सिर थे। जैसे ही आप हाल के बाहर निकले, आप पूरे हो गए। बस अड़चन शुरू हो गई। सब तिरोहित होने लगेगा-एक।
जब आप सुन रहे हैं, तब बातों को सुन कर लगता है-लाओत्से को सुन कर लगता है कि इससे आनंद मिल सकता है। आप दुखी हैं। आप जो भी कर रहे हैं, वह गलत मालूम होता है; क्योंकि उससे आपको दुख मिला है। आप अगर ऐसा कुछ कर पाएं तो आनंद की झलक प्रतीत होती है, भविष्य में कहीं आनंद मिल सकता है। लेकिन यह तो आपने बात सुनी। आप आदतों के जाल हैं। आप जो भी कर रहे हैं वह लंबी आदतों का परिणाम है। सुन लेने में आदत बाधा नहीं डालती, लेकिन करने में आदत बाधा डालेगी।
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