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ल और अंत सदा एक ही होते हैं। जहां से जीवन प्रारंभ होता है वहीं लीन भी होता है। प्रारंभ और पूर्णता एक ही घटना को दो तरफ से देखी गई, एक ही घटना को दो तरफ से पहचानी गई, एक ही घटना को दो दृष्टिकोणों से नापी गई बातें हैं। ताओ का यह मौलिक आधारभूत विचार है। इसलिए जो पूर्ण होना चाहता है, उसे मूल में वापस लौट जाना पड़ेगा। और जिस दिन कोई वृद्ध व्यक्ति छोटे बच्चे जैसा सरल हो जाता है, जीवन की पूर्णता उपलब्ध हो जाती है। और जिस दिन कोई मृत्यु को भी जन्म की भांति स्वागत करने में समर्थ हो जाता है, उस दिन मृत्यु भी नया जन्म बन जाती है। साधारण विचार मूल और अंत को विपरीत करके देखता है। अगर कोई
मूल की तरफ जाता हुआ मालूम पड़े तो हमें लगेगा कि वह पिछड़ रहा है, गिर रहा है; उसका विकास नहीं हो रहा, पतन हो रहा है। लेकिन लाओत्से कहता है कि जो प्रतिक्रमण की कला सीख लेता है, जो मूल में वापस गिरने की कला सीख लेता है, वह जीवन के परम अर्थ को उपलब्ध हो जाता है। वृद्धावस्था की पूर्णता फिर से बालक जैसा सरल हो जाना है। ज्ञानी की पूर्णता फिर से अज्ञानी जैसा निरहंकारी हो जाना है। पूर्ण प्रकाश तभी जानना उपलब्ध हुआ जब पूर्ण प्रकाश भी परिपूर्ण अंधकार जैसा शांत हो जाए। मरने की फिर कोई सुविधा न रही, जिस दिन मृत्यु अमृत जैसी दिखने लगे, जिस दिन मृत्यु जन्म बन जाए।
इसे लाओत्से कहता है, प्रतिक्रमण का सिद्धांत, लॉ ऑफ रिवर्सन।
यह बहुत विचारणीय है। बहुत साधना योग्य है। हमारी नजर आगे लगी होती है। और हम सोचते हैं कि आगे जो होने वाला है, वह पीछे जो हुआ है, उससे विपरीत है। और इसलिए हम मूल से हटते चले जाते हैं। और जितना ही हम मूल से दूर हटते हैं उतना ही हम अंत से भी दूर हट जाते हैं। क्योंकि मूल और अंत बिलकुल एक जैसे हैं।
पश्चिम और पूरब में जीवन की गति के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं। पश्चिम सोचता है कि जीवन की गति रेखाबद्ध है, लीनियर है, एक पंक्ति में चल रही है। पूरब सोचता है कि जीवन की गति वर्तुलाकार है, सर्कुलर है, एक पंक्ति में नहीं चल रही, बल्कि एक वर्तुल में घूम रही है।
अगर पश्चिम का दृष्टिकोण सही हो, जो कि तर्कनिष्ठ बुद्धि का दृष्टिकोण है, तो फिर मूल में वापस लौटने का कोई उपाय नहीं। कोई भी सीधी चलती रेखा अपने मूल बिंदु पर कभी भी वापस नहीं लौटेगी। कैसे लौट सकती है? सीधी रेखा आगे ही बढ़ती चली जाएगी। पर बहुत सी बातें सोचने जैसी हैं। अगर सीधी रेखा आगे ही बढ़ती चली जाएगी तो जो हुआ है वह फिर कभी नहीं हो सकेगा। जो हो गया, वह हो गया। और जो भी होने वाला है, वह सदा नया होगा। पीछे लौटने का कोई उपाय नहीं। प्रारंभ का बिंदु कभी उपलब्ध न होगा। दूसरी बात, सीधी रेखा कभी भी अंत को उपलब्ध न होगी। उसके अंत का भी कोई उपाय नहीं है। वह अंत भी कैसे होगी?
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