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ताओ उपनिषद भाग ४
करना हो तो धार्मिक होने की धारणा लोगों में चाहिए। अगर आपको झूठ बोलना है तो आपको सत्य बोलने का प्रचार करना चाहिए। क्योंकि झूठ केवल उसी से बोला जा सकता है जो सत्य पर भरोसा करता हो। नहीं तो कोई झूठ बोल नहीं सकता; कोई फायदा भी नहीं है। अगर सभी लोग मानते हों, झूठ बोलना ही धर्म है, फिर बड़ी मुसीबत हो जाए। फिर आप झूठ में कभी सफल नहीं होंगे। आपका झूठ सफल होता है सच में श्रद्धा रखने वाले लोगों की वजह से। आप बेईमानी में सफल हो जाते हैं, क्योंकि कुछ लोग अभी भी ईमानदारी का भरोसा किए बैठे हैं। आपकी बेईमानी
सफल नहीं होती; उनकी ईमानदारी आपकी सफलता बनती है। इसलिए क्रियाकांडी व्यक्ति को उन सारी चीजों की • प्रचारणा करते रहना चाहिए जिनके विपरीत उसे कुछ करना है।
मैंने सुना है, एक चोर एक बैंक में रात प्रविष्ट हुआ। साज-सामान लेकर गया था, डायनामाइट लेकर गया था कि तिजोड़ी को तोड़ डालेगा। लेकिन तिजोड़ी के सामने ही एक छोटी सी तख्ती उसने लगी देखी। बहुत चकित हुआ। तख्ती पर लिखा थाः डोंट यूज डायनामाइट; दि सेफ इज़ नाट लॉक्ड, जस्ट पुश दि बटन। डायनामाइट का उपयोग मत करो, ताला है नहीं तिजोड़ी पर, सिर्फ बटन दबाओ। वह चकित हुआ कि बड़े अदभुत लोग हैं! उसने बटन दबाई। लेकिन बटन दबाते ही एक बहुत बड़ा रेत का थैला उसके ऊपर गिरा। सारे बैंक में बल्ब जल गए; . घंटियां बजने लगीं। पुलिस भीतर आ गई। स्ट्रेचर पर उसे बाहर ले जाया गया। जब वह होश में आया और जब उसे एंबुलेंस में रखा जा रहा था तब उसके मुंह से ये शब्द सुने गए : माय फेथ इन ह्यूमैनिटी हैज बीन शेकन वेरी डीपली; मेरा भरोसा मनुष्यता में बुरी तरह जर्जरित हो गया।
चोर को भी आपके भरोसे पर ही भरोसा है। और तो कोई उपाय नहीं है।
चौथी जो स्थिति है, वहां धर्म भी शोषण का आधार है। इसलिए अगर आपको शोषक, बेईमान, चार सौ बीस, सब मंदिरों में, मस्जिदों में, गुरुद्वारों में इकट्ठे मिलते हैं तो चकित होने की कोई जरूरत नहीं। वे वहीं मिलेंगे। सारा आयोजन उनके लिए ही हो रहा है और उनके हित में है। यह जो कर्मकांडी मनुष्य है, इसकी जीवन-व्यवस्था का मूल आधार समझ लेना जरूरी है। क्योंकि हम में से अधिक उसी चौथी श्रेणी में होंगे। उसका मूल आधार क्या है? .
समझें, समाज में गरीबी है। तो यह जो कर्मकांडी है, यह गरीबी मिटाने के पक्ष में नहीं होगा कभी भी, यह दान के पक्ष में होगा। गरीबी का मूल आधार मिट जाए, इसके पक्ष में कभी नहीं होगा। गरीब तो बने रहें, लेकिन दान बड़ा धर्म है, इसके पक्ष में होगा। क्योंकि दान गरीबी को मिटाता नहीं, सिर्फ गरीबी को सहने योग्य बनाता है। यह मूल कारण कभी नहीं मिटाना चाहेगा, यह केवल ऊपर से लीपापोती करना चाहेगा। यह मकान की इमारत नहीं बदलेगा, आधार नहीं बदलेगा, यह सिर्फ व्हाइट वाश करने पर भरोसा रखेगा। मकान वही होगा।
इसलिए बहुत मजे की बात है कि धार्मिक आदमी है, वह एक भिखारी को दान देने के लिए तैयार है, और जो नहीं देता उसको अधार्मिक कहेगा; लेकिन इस पूरी व्यवस्था को वह समझने को तैयार नहीं है कि यह भिखारी पैदा कैसे होता है। और वह सब कुछ कर रहा है जो भी, उसके द्वारा यह भिखारी पैदा हो रहा है। वह जो भी कर रहा है, जहां से उसको दान देने योग्य रुपए मिल रहे हैं, वह पूरी व्यवस्था से यह भिखारी पैदा हो रहा है। वह व्यवस्था का आधार है खुद। लेकिन इस भिखारी को दान देने के पक्ष में है। और जो नहीं देगा दान, उसे अधार्मिक कहता है।
तो दो तरह के अधार्मिक हैं। एक वे जो दान नहीं देते। लेकिन वे उतने बड़े अधार्मिक नहीं हैं; वह जो दान दे रहा है, लेकिन गरीबी बिलकुल मिट जाए, इसके पक्ष में नहीं है।
स्वामी करपात्री ने एक किताब लिखी है और उसमें लिखा है कि समाजवाद के वे इसलिए विरोध में हैं। जो कारण दिया है, वह बहुत अदभुत है। वह कारण यह है कि हिंदू धर्म में दान के बिना मोक्ष जाने का कोई उपाय नहीं है। और अगर समाजवाद आ जाए तो दान कौन लेगा? तो फिर मोक्ष कैसे जाइएगा?
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