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ताओ उपनिषद भाग ४
यहां जो भी मैं बोल रहा हूं वह तो सिर्फ आपके भीतर एक नया अंकुरण हो जाए बीज का। फिर उसको सम्हालना पड़ेगा। फिर उसके साथ चलना पड़ेगा। फिर उसे जीवन देना पड़ेगा। वह लंबी बात है। शायद जितने जन्मों में आपने गलत आदतें इकट्ठी की हैं, उतने ही जन्म लग जाएं उनको रूपांतरित करने में। आवश्यक नहीं है कि उतने ही जन्म लगें, अगर आप तीव्रता से, सघनता से श्रम करें, तो जल्दी भी हो सकता है। लेकिन इस भरोसे आप मत रहना कि सुन कर, और आप मुक्त हो जाएंगे।
फिर जब आप मुझे सुनते हैं तो सुनते वक्त मन एकाग्र हो जाता है। क्योंकि सारा ध्यान एक तरफ लग जाता है कि मैं क्या कह रहा हूं; कहीं कुछ चूक न जाए, कहीं बीच से कोई शब्द छूट न जाए। तो आप पूरे माइंडफुल, पूरे स्मरणपूर्वक मेरी तरफ होते हैं। उतनी देर, आपके जो विचारों का जाल है, आपके जो निरंतर के भीतर चलने वाले बादल हैं, वे सब ठहर जाते हैं। एक घंटे के लिए आप अपने बाहर आ जाते हैं। आप मेरे साथ होते हैं एक घंटे के लिए, अपने साथ नहीं होते। तो जो सुख की प्रतीति होती है! हाल के बाहर निकल कर फिर आप अपने साथ हैं। फिर आपका सत्संग आपसे ही हो रहा है। उससे बाधा है। उससे बाधा है।
इससे आप यह सीखें कि आप जितनी देर के लिए भी, जिस भांति भी ध्यानपूर्ण हो सकें उतना अच्छा है। अगर आप मुझे सुनते वक्त इतने ध्यानपूर्ण हैं, घर लौटकर जब आपकी पत्नी दिन भर का इकट्ठा किया हुआ प्रवचन करने लगे, उसके प्रति भी इतने ही ध्यानपूर्ण हो जाएं। झगड़े की वृत्ति खड़ी न करें, सिर्फ ध्यानपूर्वक सुनें। अगर आप यह कर पाएं तो आप पाएंगे कि पत्नी की चर्चा में भी बड़ा रस आया। और जब आपकी बेटी और आपका बेटा आपके पास आ जाएं और कुछ आपको अनर्गल दिखाई पड़ने वाली बातें सुनाने लगें, तो उनको बाधा मत डालिए, उनकी बात भी उसी भाव से, उसी शांति से सुन लें। आप सुनने की कला सीख जाएं अगर यहां, तो उसे प्रयोग करें। और आखिर में आप अपने साथ भी सुनने की कला का प्रयोग कर सकते हैं। पर आखिर में। जब आप पत्नी से सुन सकें, बेटे से सुन सकें, मित्रों से सुन सकें, और आप अच्छे सुनने वाले बन जाएं, श्रोता बन जाएं, और आप सिर्फ सुनने का उपयोग ध्यान की तरह करने लगें, तो फिर आप खुद को भी सुन सकते हैं। फिर आपके भीतर जब सिर चलने लगे आपका और विचार चलने लगें, तब आप शांत होकर भीतर बैठ जाएं, और मन जो भी आपसे कह रहा है उसको सुनें, जो भी कह रहा है, उसमें बाधा भी मत डालें, उसे दूर खड़े होकर सुनें। तो जो आनंद आपको मुझे सुनने में आ रहा है वही आनंद आपको अपने सत्संग में भी आ सकता है।
और बड़ी अदभुत बात है, मुझे सुन कर आप नहीं बदल पाएंगे, लेकिन अगर आपने अपने मन को साक्षी भाव से सुनना शुरू कर दिया तो बदलाहट होनी शुरू हो जाएगी। क्योंकि तब आप अलग हो गए मन से, दूर खड़े हो गए, द्रष्टा हो गए, साक्षी हो गए।
साक्षी हो जाना परम अनुभव है।
आज इतना ही। पांच मिनट कीर्तन करें और फिर जाएं।