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सहजता और सभ्यता में तालमेल
आपने सुना कि सिगरेट पीना बुरा है। आपने सुना कि शराब पीना बुरा है। और समझ में आ गई बात। लेकिन जैसे ही आप भवन के बाहर होते हैं, अड़चन शुरू होगी। क्योंकि सिगरेट पीना एक आदत है। अगर आपने सिर्फ सुना होता कि सिगरेट पीना अच्छा है, सिर्फ सुना होता, और तब सुना होता कि सिगरेट पीना बुरा है और दूसरी बात आपको जंच गई होती तो पहली बात को छोड़ना आसान था। कोई आदत तो थी नहीं। वह भी सुनी हुई बात थी; यह भी सुनी हुई बात है। और जब आप सुन रहे हैं तो यह सुनी हुई बात है, और आपका जीवन एक लंबी आदतों का जाल है, वह सुनी हुई बात नहीं है। वे आदतें प्रतिरोध करेंगी। क्योंकि जो सिगरेट पीता है उसके शरीर की व्यवस्था बदल जाती है; उसके शरीर की मांग बदल जाती है। निकोटिन उसका खून मांगने लगता है; उसकी भूख पैदा हो जाती है। तो वह निकोटिन आप, वह जो भूख पैदा हो गई भीतर, जो वक्त पर ठीक घंटे भर बाद निकोटिन की जरूरत शरीर को होने लगी, क्योंकि अगर वह नहीं होगी तो आप सुस्त पाएंगे अपने को। क्योंकि निकोटिन ताजगी देता है; क्षण भर को देता है, लेकिन ताजगी देता है। तो आपने एक आदत बना ली निकोटिन से ताजगी लेने की। तो निकोटिन का संबंध हो गया ताजगी से। निकोटिन का आपको पता नहीं है। आप तो धुआं पीते हैं, लेकिन धुएं से निकोटिन आपके भीतर जा रहा है खून में; वह ताजगी देता है। तो वह इंजेक्शन है ताजगी का। थोड़ी देर आप ताजे मालूम पड़ते हैं। वह आपकी आदत हो गई। अब उसके बिना आप सुस्त मालूम पड़ेंगे।
तो सुन ली बात, वह तो ठीक है, लेकिन वह जो भीतर निकोटिन की जरूरत हो गई है पैदा, उसने नहीं सुनी। उसको कोई पता भी नहीं है कि आप क्या सुन कर आ रहे हैं। वह भीतर से धक्का मारेगा घंटे भर बाद कि उठाओ सिगरेट, नहीं तो सब सुस्त हुआ जा रहा है। दफ्तर में काम करने में मन नहीं लगता, कुछ जी नहीं मालूम होता। सब तरफ उदासी मालूम पड़ती है। सिगरेट पीते ही सब तरफ ताजगी आ जाती है। क्षण भर को ही सही, लेकिन क्षण भर को भी आ तो जाती है। तो फिर आप उठाएंगे, उससे बच नहीं सकते। क्योंकि वह आदत का हिस्सा है।
शरीर एक यंत्र है। और उस यंत्र में आपने जो आदतें डाली हैं, उन आदतों को आपको नई आदतों से बदलना पड़ेगा; नई बातें सुन कर नहीं। इसका मतलब यह हुआ कि अगर आपको सिगरेट पीना छोड़ना है तो आपको ताजगी पैदा करने की दूसरी आदतें डालना पड़ेंगी। नहीं तो आप कभी नहीं छोड़ पाएंगे। समझिए कि मैं आपको कहता हूं कि जब भी आपको सिगरेट पीने का खयाल हो तब गहरी दस सांस लें, जिनसे आक्सीजन ज्यादा भीतर चला जाएगा। तो ताजगी ज्यादा देर रुकेगी, जितनी निकोटिन से रुकती है, और ज्यादा स्वाभाविक होगी। यह एक नई आदत है। जब भी सिगरेट पीने का खयाल आए, गहरी दस सांस लें। और सांस लेने से शुरू मत करें, सांस निकालने से शुरू करें। जब भी सिगरेट पीने की खयाल आए एक्झेल करें, जोर से सांस को बाहर फेंक दें, ताकि भीतर जितना कार्बन डायआक्साइड है, बाहर चला जाए। फिर जोर से सांस लें, ताकि जितना कार्बन डायआक्साइड की जगह थी उतनी आक्सीजन ले ले। आपके खून में ताजगी दौड़ जाएगी। तब आप सिगरेट छोड़ सकते हैं। क्योंकि उससे ज्यादा बेहतर, ज्यादा अनुकूल, ज्यादा स्वाभाविक, ज्यादा श्रेष्ठ विधि आपको मिल गई। तो सिगरेट छूट सकती है। नहीं तो कोई उपाय नहीं है।
___ तो सुन लिया, यह एक बात है; करना बिलकुल दूसरी बात है। क्योंकि करने में आपके जीवन भर की आदतें बाधा बनेंगी। और जो मैं कह रहा हूं, उसमें तो कई जीवन की आदतें बाधा बनेंगी। एक जीवन की भी नहीं; कोई सिगरेट छोड़ने का ही मामला नहीं है। यह तो जन्मों-जन्मों में अहंकार की आदत आपने इकट्ठी की है। यह महत्वाकांक्षा का रोग अति प्राचीन है। इसके लिए न मालूम कितने जन्म आपने मेहनत की है। तो सिर्फ आप सुन कर उससे मुक्त हो जाएंगे, ऐसा न तो मेरा मानना है, और न आप ऐसी आशा रखना। सुन कर मुक्त होने की वासना पैदा हो जाए, इतना काफी है। फिर कुछ करना पड़ेगा। फिर कुछ साधना से गुजरना पड़ेगा।
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