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ताओ उपनिषद भाग ४
उसकी परंपरा ने चीन के ऊपर जो जबरदस्त ढांचा व्यक्तित्व का थोप दिया था, वह इतना भारी हो गया था कि उसे तोड़ना जरूरी था। जब भी कोई चीज अतिशय हो जाएगी तो टूट जाएगी। आज जगह-जगह नीति के ढांचे टूट रहे हैं; उनका कारण इतना ही है कि वे नीति के ढांचे पाखंड हैं। लाओत्से इनके जरा भी समर्थन में नहीं है। उसकी धर्म की दृष्टि बिलकुल ही अलग है। हम इस सूत्र में प्रवेश करें तो हमें खयाल में आए।
'महान प्रतीक को धारण करो, होल्ड दि ग्रेट सिंबल, और समस्त संसार अनुगमन करता है, एंड आल दि वर्ल्ड फालोज।'
क्या है वह महा प्रतीक? ताओ उसका नाम है, या कहें धर्म, या कहें स्वभाव। स्वभाव से हमें समझने में आसानी होगी। क्या है तुम्हारा स्वभाव, उस स्वभाव को ही सम्हाले रहो। और वह स्वभाव कष्ट में भी ले जाए तो कष्ट में जाओ, और वह स्वभाव तुम्हें मुसीबत में डाल दे तो मुसीबत में पड़ो। क्योंकि वह मुसीबत भी निखारने वाली सिद्ध होगी। और वह कष्ट भी तुम्हें ताजा करेगा और तुम्हें जीवन देगा। लेकिन स्वभाव को मत छोड़ो; उस महा प्रतीक को पकड़े रहो। स्वभाव से प्रतिकूल मत होओ, चाहे कितना ही कोई लाभ दिखाई पड़ रहा हो। और स्वभाव से जरा भी मत हटो, चाहे कितनी ही हानि दिखाई पड़ती हो।
लाओत्से की दृष्टि में यही साधना है कि जो मेरा स्वभाव है, मैं उसका अनुगमन करूंगा। बहुत कठिन है, बहुत कठोर है; क्योंकि पूरा समाज पाखंड से भरा है। और जहां सारे लोग पाखंड से भरे हों और जहां सब कुछ झूठ हो गया हो, वहां एक व्यक्ति अपने स्वभाव का अनुगमन करे तो कठिनाई में पड़ेगा। स्वाभाविक। क्योंकि वह ऐसी भाषा बोलने लगेगा और ऐसा जीवन जीने लगेगा कि जिसका किसी से तालमेल नहीं खाएगा।
मैं एक कहानी पढ़ रहा था। लाओत्से को पढ़ कर किसी ने वह कहानी लिखी हुई मालूम पड़ती है। कहानी का पात्र है, वह इतना प्रभावित हो जाता है लाओत्से के स्वभाव की बात से कि वह अचानक सारा पाखंड छोड़ देता है,
और जो स्वाभाविक है वैसा ही करने लगता है। घंटे भी नहीं बीत पाते कि लोगों को शक हो जाता है कि वह पागल हो गया। पत्नी अस्पताल में भर्ती करवाती है। वह बहुत कहता है कि मैं पागल नहीं हो गया हूं, मैं केवल सच्चा हो. गया हूं। तो जिस आदमी को मैं कहना चाहता था कि तू बेईमान है, उसको सदा से जानता था कि वह बेईमान है और सदा से कहना चाहता था कि बेईमान है; अब तक कहा नहीं था, अब तक उसकी ईमानदारी की प्रशंसा की थी। अब मैंने सच-सच कह दिया; मैं सिर्फ सच्चा हो गया हूं। लेकिन कोई उसकी सुनता नहीं। लोग समझते हैं कि उसके दिमाग में कुछ गड़बड़ हो गई है। लोग बहुत बुरा मानते हैं; क्योंकि वह, जैसी बात उसे ठीक लगती है, वैसी कहनी शुरू कर देता है। तो वह अपने घर बैठा रहता है। लोग उसे देखने आते हैं कि उसकी तबीयत खराब है। तो पहले तो लोग चौंकते थे जब वह सच्ची बातें कह देता था, लेकिन अब वे मुस्कुराते हैं। क्योंकि सब राजी हो गए हैं, मान लिया है कि इसका दिमाग खराब हो गया है। उसे अंततः पागलखाने जाना पड़ता है।
अगर आप, जैसी समाज की व्यवस्था है, उसमें अचानक सच्चे हो जाएं तो आप इतनी मुसीबत में पाएंगे जितना कि पागल भी नहीं पा सकता है। क्योंकि जिस पत्नी से आप जिंदगी भर से कह रहे थे कि मैं तुझे प्रेम करता हूं, तेरे बिना जी नहीं सकता, उससे आप क्या कहिएगा? जिस पति से आप कह रहे थे कि तुम परमात्मा हो और व्यवहार जिंदगी भर उससे ऐसा ही कर रहे थे जैसे वह शैतान हो, उसको क्या कहिएगा? अगर चौबीस घंटे के लिए भी आप ठीक सच्चे हो जाएं तो आप पाएंगे कि आप जिंदा नहीं रह सकते। बड़ी कठिनाई हो जाएगी।
इमर्सन ने अपने एक पत्र में लिखा है कि मैं सुनता हूं, पढ़ता हूं कि सत्य होना चाहिए, लेकिन मैं जानता हूं कि अगर लोग सत्य का अनुगमन करें तो दुनिया में दो मित्र भी खोजना मुश्किल हो जाएंगे। मित्रता ही असंभव हो जाएगी। प्रेम बिलकुल असंभव हो जाएगा; क्योंकि सब झूठ पर खड़ा है।
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