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ताओ उपनिषद भाग ४
यह दुनिया अगर नास्तिक हो गई है तो इसमें बहुत बड़ा कारण तो यही है कि दुनिया में विज्ञान ने बहुत से दुख कम कर दिए हैं। तो डर के मौके बहुत कम हो गए हैं। अगर पीछे लौटें ऋग्वेद के समय में तो ऋग्वेद का जो रूप है उससे लगता है हर चीज डरा रही है। आकाश में बादल गरजने लगें तो डर लगेगा, बिजली चमकने लगी तो डर लगेगा। हर चीज डराने वाली है। क्योंकि किसी चीज का कुछ वश नहीं है आदमी का। बाढ़ आ जाए तो डर लगेगा; वर्षा न हो तो डर लगेगा; ज्यादा हो जाए तो डर लगेगा; रात का अंधेरा भी डराएगा। सभी चीजें डर पैदा करेंगी।
अभी आने वाले कुछ दिनों में सूर्य का ग्रहण लगने वाला है। तो अफ्रीका की सरकारों को क्योंकि अफ्रीका में पूरा ग्रहण रहेगा, ऐसा हजारों वर्ष के बाद होता है तो अफ्रीकी सरकारों को खबर करनी पड़ी है आदिवासियों के लिए, जगह-जगह संदेशवाहक भेजने पड़े हैं कि तुम घबड़ाना मत, दुनिया का अंत नहीं हो रहा है। नहीं तो जंगलों में
आदिवासी हैं अफ्रीका के, वे देख कर कि सूरज दिन में अचानक समाप्त हो गया, घबड़ाहट से ही मर जाएंगे; वे समझेंगे कि दुनिया का अंत आ गया। और उनकी लोककथाओं में ऐसा है कि जब अंत आएगा तो सूरज जल्दी दोपहर में एकदम से बुझ जाएगा; जब बुझ जाएगा सूरज तो अंत आ जाएगा। तो कहीं वे घबड़ा न जाएं, कहीं कोई आत्महत्या न कर लें, इसलिए अफ्रीकी सरकार ने जगह-जगह सूचनाएं भिजवाईं कि तुम डरना मत, यह सिर्फ ग्रहण है।
वह अफ्रीका में अब भी आदमी तीन-चार हजार साल पुराना है। भय था हर चीज का। भय था तो हर भय से भगवान याद आता था। भय कम होता चला गया। न अब जंगली जानवर आप पर हमला कर रहा है; चारों तरफ से आप सुरक्षित मालूम पड़ते हैं; सीमेंट-कांक्रीट के मकान में कहीं कुछ भय नहीं मालूम पड़ता। सब रोशनी हाथ में मालूम पड़ती है। भगवान का डर कम हो गया है। भगवान का स्मरण कम हो गया है।
__ लाओत्से न तो भय देता है, न लोभ देता है। इसलिए उसका स्वाद बड़ा सादा है। वह तो सिर्फ सहज होने को । कहता है। क्योंकि सहज होना ही एकमात्र होने का ढंग है। बाकी सारे उपद्रव हैं।
'अच्छी वस्तुएं खाने को दो, राही ठहर जाता है। लेकिन ताओ का स्वाद बिलकुल सादा है।'
धर्मग्रंथ बड़ी अच्छी-अच्छी बातें खाने को देते हैं। वे कहते हैं, स्वर्ग में क्या-क्या सुख होंगे; उसका विस्तीर्ण ब्योरा बताते हैं। कभी-कभी तो ऐसा ब्योरा बताते हैं जो बाद में बहुत बेहूदा मालूम पड़ता है।
एक धर्मग्रंथ ऐसे समय में रचा गया, जब उस मुल्क में होमोसेक्सुअलिटी, समलैंगिकता बहुत तेजी पर थी। तो पुरुष लड़कों को भी प्रेम करते थे और ज्यादा दीवाने थे जवान लड़कों के, बजाय जवान लड़कियों के। यह धर्मग्रंथ उस समय रचा गया जब उस मुल्क में इस तरह की विकृत मनोदशा थी। तो स्वर्ग में इसका भी इंतजाम किया है कि वहां छोकरे भी उपलब्ध होंगे। वहां छोकरियां तो उपलब्ध होंगी ही, वहां सुंदर छोकरे भी उपलब्ध होंगे।
आदमी का मन है! तो सारा स्वाद स्थापित किया है स्वर्ग में, और सारा भय स्थापित किया है नरक में। इसलिए सभी समाजों के नरक अलग-अलग हैं, क्योंकि सभी के भय अलग-अलग हैं। सभी के स्वर्ग भी अलग-अलग हैं, क्योंकि सभी के सुख भी अलग-अलग हैं। जैसे तिब्बती स्वर्ग है तो वहां सूरज प्रगाढ़ होकर चमकता है; क्योंकि तिब्बत परेशान है सर्दी से। नरक में बर्फ जमी है; स्वर्ग में सूरज चमकता है। हमारे नरक में हम बर्फ का इंतजाम नहीं कर सकते, नहीं तो ऋषि-मुनि बहुत आनंद लेंगे बर्फ का वहां। नरक में हम आग जलाते हैं, क्योंकि हम आग से परेशान हैं। स्वर्ग में शीतल हवाएं हैं, वातानुकूलित है स्वर्ग। वह जो हमारा दुख है उसको हम नरक में डाल देते हैं; जो हमारा सुख है उसे हम स्वर्ग में डाल देते हैं। तिब्बतियों के स्वर्ग में बर्फ बिलकुल नहीं है; धूप ही धूप है, खुला आकाश है। और हमारे स्वर्ग में हमको बर्फ का थोड़ा इंतजाम करना ही पड़े। ___लाओत्से कहता है, लेकिन ताओ बिलकुल सादा है। हम न कोई अतीत, न कोई भविष्य देते; न कोई सुख, न दुख का आश्वासन देते। हम इतना ही कहते हैं कि तुम जो हो अगर तुम वही हो जाओ तो तुम्हारे जीवन की पूर्णता है
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