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ताओ उपनिषद भाग ४
लाओत्से कहता है, आदमी-आदमी के बीच सीधा संपर्क होना चाहिए; बीच में कुछ भी न हो। बीच में कोई एजेंसी अस्त्र की, शस्त्र की, राज्य की, कुछ भी न हो; आदमी आमने-सामने सीधा-सीधा हो। तो आदमी ज्यादा प्राकृतिक होगा। और जो देखेगा उस पर सोचेगा भी; और जो करेगा उससे विचार भी पैदा होगा; और उसके कृत्य उसके लिए सूचक हो जाएंगे कि वह अपने को बदले, न बदले।
'शक्ति पर भद्रता की विजय होती है।' इसलिए भी, लाओत्से कहता है, अस्त्र-शस्त्रों को हटा दो; क्योंकि उनसे तुम जीतोगे नहीं, हारोगे ही।
लाओत्से की बात शायद दुनिया अब सुनने को राजी हो जाए। क्योंकि जब उसने यह कहा था, आज से कोई तीन हजार, ढाई हजार साल पहले, तब तो अस्त्र-शस्त्र भी कुछ बड़े नहीं थे। अब तो अस्त्र-शस्त्र इतने बड़े हैं कि लाओत्से की बात समझ में आ सकती है। पूरी मनुष्यता उनके कारण आत्महत्या कर सकती है; अस्त्र-शस्त्र इतने बड़े हैं। लाओत्से की बात समझ में आ सकती है कि उन्हें हटा दो। आदमी-आदमी के बीच से जो भी, जितने उपकरण हट सकें, वे हट जाएं; आमने-सामने आदमी हो जाए। तो जीवन ज्यादा निसर्ग के अनुकूल होगा। और निसर्ग के अनुकूल आत्मा के जन्म की संभावना है।
फिर शक्ति से कोई विजय उपलब्ध नहीं होती; और शस्त्र शक्ति दे सकते हैं, भद्रता नहीं।
पांच मिनट कीर्तन करें और फिर जाएं।
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