________________
ताओ उपनिषद भाग ४
उसने कोशिश शुरू कर दी और वह अपने संबंध में जो भी बातें करता सब में उसने आशावाद फैला दिया। कोई पूछता कि धंधा कैसा है? तो वह कहता है कि बहुत अच्छा है, और कल और अच्छा हो जाएगा। पत्नी कैसी है? तो वह कहता कि बहुत अच्छी है, और कल और बहुत अच्छी हो जाएगी। सब संबंध में वह अच्छी बातें करने लगा और आशा बताने लगा। लेकिन सब लोग परेशान हुए, वह चिंतित पहले से भी ज्यादा दिखाई पड़ता था।
तो आखिर लोगों ने पूछा कि मामला क्या है? तुम आशावाद की इतनी चर्चा करते हो, फिर भी तुम इतने चिंतित क्यों दिखाई पड़ते हो? उस आदमी ने कहा कि नाउ आई एम वरीड एबाउट माई ऑप्टिमिज्म। अब मैं अपने आशावाद के प्रति चिंतित हूं कि यह सब होने वाला नहीं है जो मैं कह रहा हूं। हालतें बहुत खराब हैं।
आदमी आदतों से जीता है। आपको सुख की कोई आदत नहीं है और दुख की मजबूत आदत है। इस आदत से घिरे हुए जब सुख के सामने भी आप खड़े होते हैं तो सुख भी कुछ कर नहीं पाता, आप इतने सख्त और मजबूत हैं; वह भी दुख जैसा ही आपको दिखाई पड़ता है। आप उसमें से भी दुख खोज लेते हैं। आप कुछ न कुछ निकाल ही लेते हैं जिससे दुख...। और फिर आप निश्चित हो जाते हैं।
लाओत्से के हिसाब में आप जब भी ताओ की तरफ गतिमान होते हैं तब सुख की वर्षा होने लगती है। तब . स्वर्ग और पृथ्वी का मिलना होने लगता है; मीठी अमृत की झलक आपके ऊपर आने लगती है।
जब भी आपको कहीं भी सुख मिलता हो, चाहे वह सुख कितना ही धर्मगुरु कहते हों कि निकृष्ट है, मैं आपसे कहता हूं कि जहां भी आपको सुख मिलता हो, चाहे आप नरक में भी पड़े हों तो जब भी आपको सुख मिलता हो तब आप जानना कि किसी न किसी कारण परमात्मा से थोड़ा सा संबंध जुड़ गया है। चाहे जो आप कर रहे हों, वह बिलकुल पाप ही क्यों न हो, लेकिन उस पाप के बीच में भी आप किसी भी कारण से, जाने-अनजाने, परमात्मा से संयुक्त हो गए हैं। सुख तो सदा उससे ही मिलता है।
अगर यह आपको खयाल रहे तो आपने पाप से पुण्य का मार्ग खोज लिया, और आपने दुख से सुख की किरण पकड़ ली। और किरण हाथ में आ जाए तो सूरज बहुत दूर नहीं है। और किरण कितनी ही दूर हो, सूरज बहुत दूर नहीं है। किरण पकड़ में आ जाए और आप किरण के रास्ते पर ही चल पड़ें तो आप एक न एक दिन सूरज तक पहुंच जाएंगे।
'और जब उसका काम पूरा होता है, तब भी वह उन पर स्वामित्व नहीं करता।' वह परम स्वतंत्रता है। 'असंख्य वस्तुओं को यह वस्त्र और भोजन देता है, तो भी उन पर मालकियत का दावा नहीं है।'
सारा जीवन उससे आता है। श्वास उससे चलती है, प्राण उससे धड़कता है। फिर भी उसका कोई दावा नहीं है। ___ 'प्रायः यह चित्त या वासना से रहित है, ऐसा समझा जाता है, इसलिए तुच्छ या छोटा है।'
यह थोड़ा समझने की बात है। वह जो ताओ है, वह जो परम धर्म है जीवन का, न तो वहां कोई वासना है, न वहां कोई चित्त है, न कोई मन है, न कोई विकार है, न कोई विचार है। तो लोगों को लगता है कि यह ताओ तुच्छ और छोटी चीज है; क्योंकि हमारे लिए तो बड़प्पन अहंकार में है। हम तो एक ही बड़प्पन जानते हैं वह अहंकार का। और जहां अहंकार गौरवमंडित सिंहासनों पर नहीं पाया जाता वहां हमें लगता है सब क्षुद्र है। हम तो पूजा करते हैं सिर्फ अहंकार की। निश्चित ही, परमात्मा के पास कोई अहंकार नहीं हो सकता। होगा भी तो किसके विपरीत होगा? परमात्मा तो अति विनम्र है। अति विनम्र कहना भी ठीक नहीं है, इतना ही कहना चाहिए कि वहां कोई अहंकार नहीं है। अहंकार दूसरे के विपरीत खड़ा होता है; उससे दूसरा कोई भी नहीं है। तो अगर हमें ऐसा लगे कि
58