________________
ताओ उपनिषद भाग ४
इसलिए बुद्धिमान जो लोग हैं वे विवाद भी नहीं करते एक-दूसरे से; वे इस तरह की बातें नहीं उठाते जिनमें कि कोई विवाद हो जाए। इसलिए सबने सुविधाजनक बातें खोज रखी हैं : मौसम कैसा है? आपके बच्चे कैसे हैं? ये ऐसी बातें हैं जिनमें कि कोई जरा भी उपद्रव नहीं है; इनकी बातें करके और बच कर निकल जाना है। कोई ऐसी भी बात, जिससे कि कुछ टूट जाए, कोई विरोध हो जाए, खतरनाक है। आपको अपने पर आश्वासन नहीं है।
लेकिन परमात्मा को क्या कारण हो सकता है दावे का? आश्वस्त है।
रोम के एक चौरास्ते पर एक दिन ऐसा हुआ कि एक यात्री आया। रोम के उस चौराहे पर बारह भिखमंगे बैठे हुए थे। सब स्वस्थ मालूम पड़ते थे। शरीर अभी ठीक लगता था। तो यात्री को हुआ कि निश्चित ही अलाल हैं, भीख मांगने का धंधा कर रहे हैं। तो उसने खड़े होकर कहा कि यह जो सोने का सिक्का है, उसके लिए, जो तुममें सबसे ज्यादा अलाल हो। ग्यारह आदमी भाग कर आए और उन्होंने कहा कि मैं सबसे ज्यादा अलाल हूं। उसने कहा कि ठहरो, वह जो आदमी पीछे लेटा हुआ है यह रुपया उसके लिए है। पर उन्होंने कहा कि हम दावा कर रहे हैं, और आपने कहा जो सबसे ज्यादा अलाल हो! मैं कहता हूं कि मैं सबसे ज्यादा अलाल हूं, और सिद्ध कर सकता हूं। उसने कहा, सिद्ध करने का कोई सवाल नहीं है। दावा ही वह करता है जिसको भीतर सिद्ध नहीं है। वह आदमी सिद्ध । अलाल है। उठ कर भी नहीं आया है, रुपया लेने भी नहीं आया है; कोई दावा ही नहीं किया कि मैं अलाल हूं। दावा क्या करना है? आश्वस्त है। और जब वह उसे रुपया देने गया तो उसने इशारा किया कि खीसे में!
आप जब आश्वस्त हैं तो न कुछ सिद्ध करने को है, न कुछ दावा करने को है। जब आप आश्वस्त नहीं हैं तब आप सिद्ध करते हैं, दावा करते हैं। इसलिए एक बहुत मजे की घटना घटी है कि दुनिया में सिर्फ उन लोगों ने ईश्वर को सिद्ध करने के प्रमाण दिए हैं, जिनको ईश्वर पर भरोसा नहीं था। जिन्होंने तर्क दिए हैं ईश्वर को सिद्ध करने के लिए वे संत नहीं हैं; उनको खुद ही पता नहीं है। वे आपको तर्क नहीं दे रहे हैं; वे खुद को ही तर्क दे रहे हैं।
पहली बार जब पाश्चात्य भाषाओं में उपनिषदों का अनुवाद हुआ तो वहां के विचारक भरोसा न कर सके कि इस तरह की किताबें-किस तरह की किताबें हैं ये! क्योंकि इनमें कोई तर्क नहीं है। ईश्वर है, इसकी सीधी चर्चा है; लेकिन इसका कोई तर्क नहीं है सिद्ध करने के लिए कि वह क्यों है। तो उन्हें लगा कि ये किताबें कविता की ज्यादा हैं, दर्शन की नहीं। क्योंकि वे जिन किताबों से परिचित हैं उन किताबों में तर्क दिए हुए हैं कि ईश्वर इसलिए है, ईश्वर इस कारण से है। उपनिषदों में कोई तर्क नहीं है। और मैं कहता हूं, इसीलिए उपनिषद धार्मिक किताबें हैं, क्योंकि तर्क देने का कोई सवाल ही नहीं है। उपनिषद के ऋषियों को आश्वासन है कि वह है। बात खतम हो गई है। इसे सिद्ध करने का कोई उपाय नहीं है; न कोई जरूरत है।
जब भी आप किसी चीज को सिद्ध करने के लिए चेष्टारत हो जाते हैं तब अपने भीतर खोजना, और आप पाएंगे कि आपका आश्वासन नहीं है। नास्तिक आस्तिकता को सिद्ध करने की कोशिश में लगे रहते हैं; अधार्मिक धार्मिकता को सिद्ध करने की कोशिश में लगे रहते हैं। जो आप नहीं हैं उसको ही सिद्ध करने की आप कोशिश में लगे रहते हैं। जो आप हैं उसको तो छिपाना पड़ता है; सिद्ध करने की कोई जरूरत नहीं है।
लाओत्से कहता है, उसका कोई भी दावा नहीं है, महानता की कोई घोषणा नहीं है; और इसलिए उसकी महानता सिद्ध है, सदा उपलब्ध है।
अब पांच मिनट रुकें, कीर्तन करें और फिर जाएं। आज इतना ही।