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सारा जमत ताओ का प्रवाह है
उस स्वीकृति में महाजीवन उपलब्ध होता है। वह जो अभी एक चिनगारी की तरह हमारे भीतर है वह एक महासूर्य की तरह हो जाती है। वह जो अभी चैतन्य की एक छोटी सी बूंद है वह चैतन्य का एक महासागर बन जाती है।
परमात्मा आपको अस्वीकार नहीं करता है, लेकिन इससे आप यह मत समझ लेना कि आप स्वीकृत हो गए हैं। स्वीकृत होने के लिए तो पात्र होना होगा। और इस पात्रता का पहला कदम यही है कि आप अस्वीकार करना बंद कर दें।
जीसस का एक बहुत प्यारा वचन है जिसमें उन्होंने कहा है, जज यी नाट सो दैट यी मे नाट बी जज्ड। __ तुम दूसरों का निर्णय मत करो, और तुम दूसरों के संबंध में धारणाएं मत बनाओ, तुम दूसरों के न्यायाधीश मत बनो, ताकि वे भी तुम्हारे न्यायाधीश न बनें। अगर तुमने कहा कि यह बुरा है, तुमने कहा कि यह गलत है और तुमने कहा कि यह आदमी जीने योग्य भी नहीं है, तुमने निंदा की, तुमने घृणा की और तुमने अस्वीकार किया, तो तुम अपने ही हाथों जो तुम दूसरे के लिए कर रहे हो अस्तित्व से तुम अपने लिए कर रहे हो। तुम मत करो निर्णय और तुम मत न्यायाधीश बनो।
और हम सब न्यायाधीश हैं। हम उठते-बैठते-चलते निर्णय किए चले जाते हैं। कुछ भी हम देखते हैं, और हम देख भी नहीं पाते हैं पूरा और भीतर निर्णय हो जाता है। एक आदमी को देखा नहीं कि हम सोच लेते हैं कि यह आदमी बुरा है। एक आदमी को देखा नहीं कि हम सोच लेते हैं कि यह गलती बात है। हम बड़ी जल्दी निर्णय ले रहे हैं, जैसे निर्णय हमारे लिए ही हुए हैं। कोई आदमियों को देखने की जरूरत नहीं; हम पहले से ही जानते हैं कि आदमी गलत है। बस थोड़ा सा सहारा चाहिए, बहाना चाहिए। हमने सब तैयार कर रखा है, खूटी कहीं मिल जाए, हम टांग देंगे। हमारे निर्णय पूर्व-निर्मित हैं, और हम लोगों पर उन्हें टांगते रहते हैं।
जिस दिन आदमी अस्वीकार करना बंद कर देता है और जीवन के रहस्य को स्वीकार कर लेता है, और जान लेता है कि जो मेरी समझ में नहीं आता वह भी अस्तित्व को तो समझ में आता ही है, जो मुझे बुरा लगता है वह भी अस्तित्व को तो बुरा नहीं लगता इसीलिए है, जो मुझे स्वीकार नहीं है वह भी जीवन को स्वीकार है। जीवन मुझसे बड़ा है, मैं अपनी अस्वीकृति को हटा दूं; मैं अपने निषेध को अलग रख दूं; मैं निर्णय न लूं और मैं बिलकुल निष्पक्ष हो जाऊं; मैं कोई पक्ष न बनाऊं। ऐसा व्यक्ति एक क्रांति से गुजर जाता है। क्योंकि जैसे ही आप ये पक्ष बनाने, धारणाएं बनानी बंद कर देते हैं...।
आपको लगता है कि चोर बुरा है। लेकिन चोर इसलिए बुरा नहीं लगता कि चोरी बुरी है; चोर इसलिए बुरा लगता है कि आपको अपनी संपत्ति प्रिय है। उस तत्व को आप नहीं देखते कि चोर बुरा क्यों लगता है। संपत्ति प्रिय है! और इसलिए चोर का विरोध करना जरूरी है। क्योंकि आप कहते हैं, अगर सब ठीक है तो फिर कल कोई
आपकी चीज उठा कर ले जाता है। आप जानते हैं कि मेरी चीज कोई उठा कर ले जाए तो मुझे बुरा लगता है। लेकिन फिर भी चोर का अस्तित्व है और यह बुरा लगना मेरी धारणा है। और यह धारणा बदल सकती है। व्यक्तिगत संपत्ति न रहे समाज में तो चोरी के बुरे होने की बात खत्म हो जाएगी।
एस्कीमो हैं साइबेरिया में। तो एस्कीमोज की एक व्यवस्था है। आप किसी एस्कीमो के घर में जाएं, वैसे ज्यादा एस्कीमो के पास कुछ होता नहीं, बहुत छोटी-मोटी चीजें, जीवन-चलाऊ, बामुश्किल कठिनाई से जीता है, लेकिन अगर आपको कोई चीज पसंद आ जाए तो एस्कीमो समाज की व्यवस्था है कि कोई कह दे कि तुम्हारा कोट बहुत अच्छा, तो उसी वक्त कोट भेंट कर देना है। तो एस्कीमो समाज में चोरी नहीं होती। चोरी का उपाय नहीं है। चीजें बहुत थोड़ी हैं, जीवन बहुत कठिन है और दरिद्र है। लेकिन यह नियम चोरी को काट डाला है। किसी के भी घर में कोई कह देगा कि यह कुर्सी मुझे पसंद पड़ गई, यह खाट मुझे अच्छी लग गई, यह कपड़ा बहुत प्यारा है, यह