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[१८] सारांश--जिनकल्पी व नग्नता असली मुनिलिंग नहीं है किन्तु विशिष्ट प्रवृत्ति ही है। असली मुनि मार्ग यानी सर्व सामान्य मुनि जीवन स्थविर कल्प ही है। .... दिगम्बर--स्थविर कल्प और जिनकल्पी के लिये पूर्व ज्ञान की अनिवार्यता है, इत्यादि ये सब श्वेताम्बर की कल्पना ही है।
जैन--दिगम्बर शास्त्र में भी जिनकल्पी और स्थविरकल्पी की व्यवस्था बताई है इतना ही नहीं किन्तु जिनकल्पी के लिये विशिष्ट ज्ञान और विशिष्ट सहनन की अनिवार्यता भी स्वीकारी है। देखिये प्रमाण
१-मुनियों के जिन कल्पी और स्थवीर कल्पी ये दो भेद हैं।
(आ० जीनसेन कृत आदि पुराण सर्ग-11, श्लोक ) मूलुत्तर गुण धारी, पमादसहिदो पमाद रहिदो य । ऐकेक्को वि थिरा-थिर भेदण होइ दुवियप्पो॥२१॥ थिर अथिरा ज्जाणं पमाद दप्पेहिं एगबहुवारं ॥ समाचारदिचारे, पायच्छित्तं इमं भणियं ॥ २६१ ॥ याने जैन साधु के प्रमत्त और अप्रमत्त तथा स्थविर कल्पी और अस्थविर कल्पी ये दो २ विकल्प है आर्या के भी ये ही दो दो भेद है।
(दि० मा० इन्द्रनन्दि कृत छेदपिंगम् ) ३-दुविहो जिणेहिं कहियो जिणकप्पो तहय थविरकप्पो य॥ सो जिण कप्पो उत्तो उत्तम संहणण धारिस्स ॥ ११६ ॥ एगारसंगधारी ॥ १२२ ॥ याने-जिन कल्प और स्थविर कल्प ये दो कल्प है जिन कल्प उत्तम संहन वाले और ग्यारह अंग वेदी के योग्य है।
(मा. देव सेन कृत भाव संग्रह)
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