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कषाय मुक्तिः किल मुक्ति रेव ||
समभाव भावियप्पा, लहई मुक्खं न संदेहो ||
सम्यग् दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः ॥
सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान व सम्यक् चारित्र वाली श्रात्मा मोक्षके योग्य है, चाहे वह किसी भी वेश में, जाति में या वेद में हो ।
माने योग्यता को पाकर अन्य लिंगी भी सिद्ध हो सकता है।
दिगम्बर
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शुद्र तो पांचवे गुणस्थान का अधिकारी है वह मोक्ष में नहीं जाता है। श्वेताम्बर समाज शूद्रों की भी मुक्ति मानता है वह तो उसकी गलती है।
जैन - जैसे कोई भी द्रव्य लिंग मोक्ष का बाधक नहीं है वैसे ही कोई भी जाति मोक्ष बाधक नहीं है । एकेन्द्रिय वगैरह वास्तविक जाति है और वाह्मण वगैरह काल्पनिक जाति है. इस हालत में शूद्र मूक्ति का एकान्त निषेध करना, न्याय मार्ग नहीं है । श्रतएव स्याद्वाद दर्शन शूद्र मुक्ति के पक्ष में हैं ।
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दिगम्बर — दिगम्बर समाज शूद्र मुक्ति का निषेध करता है उसका कारण शूद्र का नीच गोत्र है । चारो गति में नारकी तीर्थच म्लेच्छ-शूद्र और अंतर पिज मनुष्य नीच गोत्री हैं तथा श्रार्यमनु tय भोगभूमि के मनुष्य व देव उच्च गोत्री हैं। इससे पाया जाता है कि चन्दन स्फटिक चित्रवल्ली, मारवल वगैरह जो की श्रेष्ट जातियां है जिनकी प्रतिमा बनाई जाती हैं, जल केसर चन्दन फूल वनस्पति का इत्र वगैरह जो कि तीर्थकर के ऊपर चढ़ाये जाते हैं, श्रक्ष, जिसकी स्थापना होती हैं, गाय सफेद हाथी मृगराज घोडा कामधेनु गाय हंस देशविरतिश्रादिधर्म के अधिकारी निर्यञ्च व शूद्र ये सब भी नीत्र गोत्री हैं, और धर्म द्वेषी साधुद्वेषी नमुचि सम्यक्त्व रहित युगलिये अविरतिदेव और संगमक मेघमाली जैसे पापदेव ये सभी उच्च गोत्री हैं।
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