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(बनारसी विलास गोरख वचन गा० २ पृ० २०९) माने अनेकांत जैन दर्शन में शुध्ध परिणाम वाला गृहस्थ लीगी भी मोक्ष का अधिकारी है।
दिगम्बर-मूळुरूप परिग्रह का अभाव होने से वस्त्र धारी मुनि मोक्ष में जाता है, गृहस्थ भी मोक्ष में जाता है, तो कमी २ कोई आभूषण धारी भी मोक्ष में चला जायगा।
जैन-जहाँ वाह्य वस्तु की प्रधानता नहीं है वहाँ यह भी होना मुमकिन है जैनदर्शन मूछी न होने के कारण उसको भी मोक्ष मानता है।
समय प्राभूत गा• ४४५ की तात्पर्यवृत्ति में और दिगम्बरीय पाण्डव चरित्र में नप्न लोहा के आभूषण होने पर भी मोक्ष प्राप्ति बताई है । यद्यपि वह परिषह रूप था किन्तु श्राभूषणों के अस्तित्व में केवल ज्ञान की रुकावट नहीं मानी है । और उसका कारण वही “ममत्वाभावात्" ही बताया है । अपमत्त अात्मा को वस्त्र पीछी या आभूषण है या नहीं है, ऐसी तनिक भी ममत्व विचारणा नहीं होती है। यही कारण है कि वह उसी हालत में मोक्ष तक पहुंच जाता है।
दिगम्बर-तब तो अजैन सन्यासी भी भाव से जैन बनकर क्षपकश्रेणी में चढकर केवली होगा, मोक्षगामी हो जायगा !
जैन--सच्चे अनेकान्ती जैन दर्शन को यह भी इष्ट है। मोक्ष के लिये किसी का ठेका तो है नहीं ! नामजैन नरक में भी जाता है भाव जैन मोक्ष में भी चला जाता है । वल्कलचीरी जैनलिंगी नहीं था अन्यलिंगी था, फिर भी वह मोक्षगामी हुअा। अतः जैन दर्शन साफ २ कहता है कि
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