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"त्वक" तिक्ता दुर्जरा तस्य वातकृमिकफापहा। स्वादु शीतं गुरु स्निग्धं "मांस" मारुतपित्तजित् ।।
( सुश्रुत संहिता) "त्वक" तिक्तकटुका स्निग्धा मातुलुंगस्य वातजित् । बृहणं मधुरं "मांसं" वातपित्त-हरं गुरु ॥
(सुश्रुत संहिता) पूतना स्थिमती सूक्ष्मा कथिता मांसला मृता ॥८॥
(भावप्रकाशनिघण्टु, हरितक्यादिवर्ग ) मांसफला-चंगन
(शब्द स्तोत्र महा निधि) एवं 'मांस' का प्रधान अर्थ 'फलगर्भ' भी है ।
(३) "नपुंसकलिङ्ग वाला ही मांस शब्द मांसवाचक है किन्तु पुल्लिंगी मांसशब्द मांसवाचक नहीं है। यहां तो मांसक शब्द पुल्लिंग में ही है। कोई भी भाषा शास्त्री यहां भ्रमित अर्थ न कर बैठे, इस के लीये स्पष्टतया यह पुंल्लिंग प्रयोग किया गया है, फिर कोई यहां मांस अर्थ करने लगे तो वह उसकी मनमानी है।
वास्तव में पुल्लिंग होनेके कारण यहां मांसका अर्थ मांस नहीं किन्तु 'पाक' ही होता है ।
भगवती सूत्र के प्राचीन चूर्णीकार और टीकाकारोने भी "कुक्कुटमांसकं-बीजपुरकं कटाई" लीखकर मांस का अर्थ 'पाक' ही लिया है। सारांश-यहां मंसए' शब्द 'बीजौरा पाक का द्योतक है ।
उक्त मुकम्मील पाठ पर विचारयह सारा पाठ दाहज्वर के वनस्पति-औषध का द्योतक है। मूलपाठ इस प्रकार है
तत्थणं रेवतीए गाहावइणिए मम अट्ठाए दुवे कवोयसरीरा उपक्खड़िया, तेहिं नो अहो। अस्थि से अन्ने पारियासिए मञ्जार कड़ए कुक्कुड़मंसए, तमाहराहि एएणं अट्ठो।
सर्वतो मुखी बुद्धिसे शोचा जाय तो इस समुच्चय पाठका मर्थ निम्न प्रकार ही है... वहां रेवती गाथापत्नीने मेरे निमित्त दो पैठे बना रक्खे है,
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