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( आ. नेमिचंद्र सिद्धांतचक्रवर्ति के 'अनागत - प्रकाश' के आधार पर विद्वदूवर नेमिचंद्र कृत और ब्र० ज्ञानचंदजी महाराज संपादित 'सूर्यप्रकाश' )
२ - " तिस समय श्वेताम्बर आम्नाय विशेष होय रही थी । दिगम्बर आम्नाय में कुछ कुछ विक्षेप पड गया था ।"
“ ४७० की सालमें वारानगर में श्रीकुंदकुंद मुनिराज थे ।” " वे विदेह क्षेत्रमें जाय पहुंचे"
" ग्रन्थोके नाम ये हैं- मतांतर निर्णय ८४०००, सर्व शास्त्र ८२००० कर्मप्रकाश ७२०००, न्यायप्रकाश ६२०००, ऐसे चार ग्रन्थ लेकर भगवानसुं आज्ञा मागी" ।
"लाखो प्राणियोंने श्वेताम्बर धर्म छुड़ाय दिगम्बर किये । धर्ममार्ग प्रवर्त्ताया" ॥
“कुन्कुन्दस्वामी संघ ५९४ मुनियोकी संख्या हो गई" । माने - आचार्य कुन्दकुन्द ने धर्ममार्ग बताया ।
( एलक पन्नालालजी दिगम्बर जैन सरस्वती भूवन - बम्बईका गुटका, सूर्यप्रकाश लो० १५२ की फूटनोट पृ० ४१ से ४७ ) ३ तेन मण्डपदुर्गे श्रीवसन्तकीर्त्ति स्वामिना चर्यादिवेलायां तट्टी सादरादिकेन शरीरमाच्छाद्य चर्यादिकं कृत्वा पुनस्तन्मुञ्चन्तीत्युपदेशः कृतः ।
इस समय दिगम्बर मुनिधर्मका विच्छेद हुआ और भट्टारकों का प्रारम्भ हुआ ।
( दर्शनप्राभृत गा० २४ की श्रुतसागरी टीका पृ० २१)
बाद में आचार्य शान्तिसागरसूरिजीने दिगम्बर मुनि मार्गका पुनविधान किया है।
४ तेरहपंथी मानते हैं कि
पञ्चमका किल मुनयो न वर्तन्ते ।
इस पांचवे आरेमें दिगम्बर मुनि है नहीं ।
( दर्शनप्राभृत गा० २ की श्रुतसागरी टीका ) जिनवाणी का विच्छेद होने पर चारो संघ की कोई किंमत नहीं है एवं मुनिधर्म का विच्छेद होने पर भी और २ संघ की कोई किंमत नहीं है । वास्तव में इसीका नाम ही 'धर्मविच्छेद'
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