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होना तो ख़ास बात है। अतः भ० महावीर स्वामी ब्राह्मण के कुल मैं आये वह "अघट घटना' है ही । दिगम्बर शास्त्र कई वर्ष के बाद रचे गये अतः उनमें इस आश्चर्य का जी नहीं है। दिगम्बर- ऐसा क्यों बना ?
जैन - भगवान् महावीर स्वामीने मरीचि के भव में भरत राजा के वांदने पर तीनों उत्तम पदवीयों के निमित्त कुळका अभिमान किया था, और नीचगोत्र कर्म को बांधा था। देवानंदा ब्राह्मणी के कुल में जन्म लेने का कारण यही कर्म है ।
इसी कर्म के उदयसे भ० महावीर स्वामीने कई भव तक ब्राह्मण कुल में जन्म पाया है ।
मगर इसका सर्वथा क्षय नहीं हुआ, परिणामतः शेष रहा हुआ कर्म आखीर के भव में उदयमें आया, और भगवान महावीर स्वामी का देवानंदा की कोंखमें च्यवन हुआ ।
दूसरी तरफ एक दौरानी और जेठानी का युगल था, जेठानी ने धोखा बाजी से दौरानी के रत्न चूरवा लोये, दानोंमें काफी लड़ाई हुई, कुछ रत्न पीछे दीये गये, इसी समय दौरानीने आवेश में आकर कह दिया कि यदि में सच्ची हुं और तूं जूठी है तो इसका बदला दूसरे भवमें तुजे यही मिलेगा कि तेरा धन-माल पुत्र सब मेरा हो जाय !' बस वैसा ही हुआ । दौरानी भद्रिक थी वह मर करके सिद्धार्थ की रानी बनी, जेठानी मर करके ऋषभदत्तकी पत्नी बनी, और पूर्वभवके लेन-देनके अनुसार देवानंदा का पुत्र देवके द्वारा त्रिशला रानीको मीला । कर्मकी गति विचित्र है ।
दिगम्बर- क्या ब्राह्मणकुल यह नीचगोत्र है ?
जैन- नहीं जी। किन्तु यहां तो मरीचिने जिस कुलका अभिमान किया था उसके मुकाबले में यह उच्चता और नीचता मानी जाती है । वास्तवमें ब्राह्मणकुल यह भीक्षा प्रधानकुल है ब्राह्मण व ब्राह्मण कन्या को भीक्षुक भीक्षुकी कहने की नजीर महाभारत वगेरह में उपलब्ध है इस हिसाब से क्षत्रियवंश के मुकाबले में ब्राह्मणकुल उसम नहीं है। तीर्थकर शौर्यवान होते हैं भतः उनका जन्म भीक्षुककुल में होता नहीं है, राजवंश में ही
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