Book Title: Shvetambar Digamber Part 01 02
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Mafatlal Manekchand Shah

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Page 288
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३९ रहे। उनके विमान के चले जाने पर देखा तो अंधेरा सा ही हो गया था, अतः आर्या मृगावती भी एकदम अपने उपाश्रय में जा पहूची । उस समय उनकी गुरुणी आर्या चंदनबालाने फरमाया कि- 'तुम्हें इतना उपयोग शून्य बनना नहीं चाहिये कि दिवस है या नहीं है उसका पत्ता भी न लगे, इत्यादि' इतना सुनते ही आर्या मृगावती अपनी गलती का पश्चात्ताप करने लगी और उस समय वहां ही उसी ही शुभ भावना के जरिए घातियें कर्मों को हटा कर 'आर्या मृगावती' ने केवल ज्ञान प्राप्त किया। उन्हें केवलोनी देख कर 'आर्या' चंदनबाला' ने भी मैंने केवली की अशातना की एसा मानकर उसका पश्चात्ताप करते करते केवलज्ञान पाया। इस प्रकार सूर्य और चंद्र के अवतरण के साथ दो आर्या ओं के केवलज्ञान की घटना भी जड़ी हुई है। महानुभाव ! दिगम्बर समाज स्त्रीमुक्ति की तो मना करता हैं, फिर वह चंदनबाला और मृगावती के केवलज्ञान और उसके आदि कारण रूप सूर्य चंद्र के अवतरण को अपने शास्त्र में कैसे दाखिल करे ! बस इस कारण से ही दिगम्बर शास्त्रोने इस घटना को अपनाया नहीं है 1 यह सूर्य और चंद्र का मूल विमान के साथ आना और कृत्रिम विमान से ज्योतिमंडल का कार्य करना, ये सब आश्चर्य रूप हैं। दिगम्बर- इन २० उपसर्गों के वास्तविक स्वरूप जाणने पर श्वेताम्बर और दिगम्बर में कोन सच्चा है और कोन जूठा है ? उसका ठीक ज्ञान हो जाता है । जैन - जब तो आपने इस विषय में श्वेताम्बर कितने प्रमाणिक है ? उसका ठीक निर्णय भी कर लीया होगा । अस्तु । वाकई में जो सच्चा है वह सदा सच्चा ही रहता है 1 For Private And Personal Use Only

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