Book Title: Shvetambar Digamber Part 01 02
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Mafatlal Manekchand Shah

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Page 283
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन-स्वयं तीर्थकर भगवान्ने श्रीमुख से जो फरमाया है उसे उडा देना, यह तो भारी अज्ञानता है, सत्यका द्रोह है, महा पाप है । इस घटना के पीछे अनेक सत्य छीपे हुए हैं। जैसे कि-जगत्कतृत्वका निरसन, कर्मकी स्थीति स्थापकता, जीवकर्मका सम्बन्ध, कर्म विपाककी विषमता, बन्ध, मोक्ष, आत्माका विकास, उत्क्रमवाद, अप्पा सो परमप्पा, और जैनदर्शन की सिद्धि वगेरह वगेरह । दिगम्बर-सुना है कि-खरतरगच्छके आ० जिनदत्तसूरिजी असलमें दिगम्बर हुमड थे, मगर बादमें श्वेताम्बर मुनि बने हैं, वे इस गर्भापहार को कल्याणक भी मानते हैं । जैन-कीसी अंशमें यह ठीक बात है । आणजिनवल्लभसूरिजि ने ६ कल्याणककी प्ररूपणा करके 'षटकल्याणक मत' चलाया है, और आपके ही पट्टधर आ० जिनदत्तसूरिजी ने उसे अपनाकर 'खरतर' मत चलाया है । इस प्रकार आजिनदत्तसरिजी गर्भापहार नामक छठे कल्याणक के स्थापक नहीं किन्तु समर्थक हैं। यहां वास्तविक सत्य इतना ही है कि भगवान् महावीरस्वामीका गर्भापहार हुआ है और वह प्रसंग कल्याणक के रूपमें नहीं किन्तु जीवनी की विशेष घटना के रूपमें माना जाता है, इसके अतिरिक्त गर्भापहारकी मना करना वह एकांत पक्ष है, और गर्भापहार को कल्याणक मानना वह भी सर्वथा एकांत पक्ष है यूं ये दोनो एकांत पक्ष ही हैं । मगर यहां एक बात स्पष्ट हो जाती हैं कि-दिगम्बर मत गर्भापहारकी मना करता है, अत एव संभवतः दिगम्बर की हैसियत से ही आ• जिनदत्तसरिजीने गर्भापहार पर ज्यादह जोर दिया है, माने एक सत्य घटना पर विशेष प्रकाश डाला है। यहां भ०महावीरस्वामी के नीचगोत्र कर्मका उदय, ब्राहमणी की कोखमें आना, हरिनैगमेषी के द्वारा गर्भका परावर्तन होना १४ स्वप्नों का अपहरण और त्रिशला रानी के उदरमें साड़े छै महिने तक बसना, ये सब इस आश्चर्य में शामील है। दिगम्बर-श्वेताम्बर कहते हैं कि-(७) चमरेन्द्र ऊपरके देवलोक में जाता नहीं है, किन्तु 'पूरण' नामका तपस्वी मरकर 1 For Private And Personal Use Only

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