Book Title: Shvetambar Digamber Part 01 02
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Mafatlal Manekchand Shah

View full book text
Previous | Next

Page 285
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ से देते ह । वे बताते हैं कि-'भगवान् महावीर स्वामीको वै० शु०१० को केवलज्ञान हुआ, परन्तु उनका 'दिव्यध्वनि' ६६ दिन तक नहीं खीरा, अत: उनका प्रथम उपदेश श्रा० कृ० १ को हुआ।' माने-सर्वज्ञ होने के पश्चात् ६६ दिवस तक तीर्थकर भ० महावीर स्वामीका उपदेश ही नहीं हुआ। श्वेताम्बर शास्त्र तो 'तीर्थकरनामकर्म' के उदयके कारण केवल प्राप्ति के दिवस से ही भ० महावीर स्वामीका उपदेश दान मानते हैं। साथ साथमें यूं भी मानते हैं कि-पहिले दिन मनुष्य समोसरन में न आ सके, देव आये थे कि जो अविरति होते हैं अतः उस समय का भ० महावीरस्वामीका उपदेश निष्फल गया, बादमें दूसरे ही दिन वै० शु० ११ को भगवान् अपापा में पधारे, वहां उन्होंने उपदेश दिया, जीव और कर्म आदिकी शंकाए हटवाकर इन्द्र भूति गौतम आदिको दीक्षा देकर 'गणधर' बनाये,x त्रिपदीका दान किया और चतुर्विध संघकी-तीर्थकी स्थापना की। इस प्रकार सर्वज्ञ होने पर भी तीर्थकर भगवान् की देशना निष्फल जाय, यानी दिगम्बरीय कल्पना के अनुसार वे उपदेश ही न देसके-मौन रहे, यह 'अघटन घटना' तो है ही। दिगम्बर-भगवान् महावीर स्वामीका दिव्यउपदेश ६६ दिन तक नहीं हुआ उसका कारण 'वहां गणधर की उपस्थीति नहीं थी,' वही है ऐसा दिगम्बर शास्त्र में बताया गया है, मगर यह ठीक जचता नहीं है। क्योंकि-दिगम्बर मानते हैं कि भगवान् ऋषभदेवकी वाणी विना गणधर के ही खोरी थी, जिस तरह वह खीरी थी उसी तरह भ० महावीर स्वामी की वाणी भी विना गणधर के खीर सकती थी, और तीर्थकर भगवान भी अमुक खास श्रोता के अधीन है नहीं, फिर ६६ दिनतक उसकी वाणी क्यों न खीरी ? इस प्रश्नका कोई उत्तर नहीं है, अतः इस घटना को भी आश्चर्य तो मानना ही चाहिए !। जैन-यहां १२ पर्षदा की अनुपस्थीति, महाव्रत, अणुव्रत आदिका अस्वीकार, और तीर्थकी स्थापना नहीं होना, यह 'आश्चर्य है। x जीवाजीव विसय संदेह विणासणमुवगय वद्धमाण पादमूलेण इंदभूदिणा वहारिदो । (षट्खंडागम पु० १ पृ० ६४) For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 283 284 285 286 287 288 289 290