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आश्चर्य अधिकारः
दिगम्बर-अब जो अवसर्पिणीकाल चल रहा है वह ज्यादा खराब है, अतः यह "हुंड अवसर्पिणी" काल माना जाता है और ईसीमें कई 'अघटन घटनाएँ' बनी हैं। उसके लीये लीखा है कि
उत्सर्पिण्यवसर्पिण्य-संख्यातेषु गतेष्वपि । हुंडावसर्पिणी काला, इहायाति न चान्यथा ॥७३॥ उपसर्गा जिनेन्द्राणां, मानभंगश्च चक्रिणाम् । कुदेव-मठ-मृाद्याः, कुशास्त्राणि अनेकशः ॥७६।।
( सिद्धांत प्रदीप) माने असंख्यात सपिणीकाल से जो एक सी व्यवस्था चली आती है, उसमें कभी कुछ नैमितिक फरक पड़ता है और कोई विभिन्न किन्तु होणहार और शक्य वात बन जाती है उसे "अघटघटना' कहते हैं । इसीका ही दूसरा नाम 'आश्चर्य' याने 'अच्छेरा है।
(सिद्धान्तसार त्रैलोक्य प्रज्ञप्ति पार्श्वनाथ पुराण हीन्दी) दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों अपने २ हिसाब से अलग २ आश्चर्य मानते हैं, और एक दूसरे के आश्चर्य को सर्व साधारण घटना या कल्पना के रूपमें जाहिर करते हैं। मुझे तो इस विषय में दिगम्बर अधिक सच्चे हो, ऐसा प्रतीत होता है।
जैन-आप प्रथम दिगम्बर के ओर बाद में श्वेताम्बर के सब आश्चर्यों को अलग २ करके शोचिये, कि इस विषय में भी सत्यासत्य का निर्णय हो जाय ।
दिगम्बर-दिगम्बर मानते हैं कि (१) सब तीर्थकरों का जन्म 'अयोध्या नगरमें ही होना चाहिये किन्तु शीतलनाथजी नेमनाथजी वर्धमान स्वामी वगेरह तीर्थकरोने भहिलपुर द्वारिका कुंडपुर वगेरह शहरोमें जन्म लीया, यह प्रथम आश्चर्य है।
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