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वे काम नहीं है । किन्तु उस के वहां दूसरा विशेषपुराणा और विराली वनस्पति की भावनावाला बीजौरा पाक है उस को ले आ, वह कामका है ॥
सारांश - इस पाठ में प्राणवाचक नाम वाली औषधिका ही स्वरूप वर्णन है । उसे लेनेसे ही भगवानका दाह शान्त हुआ था ।
दिगम्बर- पं० कामता प्रसादजी दिगम्बर विज्ञान बताते हैं कि- भ० महावीर स्वामीका निर्वाण विक्रम से ४८८ साल पहिले हुआ है, अतः प्रचलीत 'वीर निर्वाण संवत्' में १८ वर्ष बढाने से वास्तविक वी०नि०सं० आता है, वीरनिर्वाण संवत् वही सच्चा है ।
जैन - भगवान् महावीर स्वामीका निर्वाण विक्रम पूर्व ४७० में हुआ है, यह मत इतिहास सिद्ध माना जाता है । इस में १७ वर्ष बढाने से तो 'गोशाल संवत्' हो जाता है, क्योंकि भगवान महावीरस्वामी से करीबन १६ ॥ साल पूर्व मंखलीपुत्र गोशाल की मृत्यु हुई है, और असल में उसी को ही संतान आजका दिगम्बर सम्प्रदाय है अतः दिगम्बर साहित्य में गोशाल संवत ही कहीं 'वीर संवत्' मानलीया गया हो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं है । वास्तव में तो प्रचलीत 'वीर निर्वाण संवत्' सच्चा है कई दिगम्बर ग्रंथ भी इस मान्यता की ही ताईद करते हैं ।
दिगम्बर - भ० महावीर का निर्वाण कार्तिक कृष्णा १४ की रातके अंतभाग में हुआ है ऐसा दिगम्बर मानते हैं, जो ठीक जचता है । जैन - भगवान् महावीरस्वामिका निर्वाण कार्तिक कृष्णा अमाकी रात हुआ है, श्वेताम्बर ऐसा मानते हैं, दिगम्बर 'निर्वाण भक्ति श्लोक-१७' में वही बताया गया है और सिद्धक्षेत्र 'पावापुरीजी' में वही माना जाता है । किन्तु पावापुरी तीर्थ शुरुसे ही saarat के अधीन है अतः हो सकता है कि-दिगम्बर समा जने चतुर्दशीको निर्वाण मनानेका वहांके लीप शुरु किया होगा और बादमें ओर २ ग्राम वालेने भी १४ को 'छोटी दिवाली' बोल-' कर निर्वाण मानना जारी कर दिया होगा, मगर वह सच्चा नहीं है । कुछ भी हो । भगवान् महावीर स्वामीका 'निर्वाण' का०कु० anant ही हुआ है, और वही सप्रमाण माना जाता है ।
दिगम्बर - तीर्थकर पद पाने के 'दर्शन विशुद्धि' वगेरह '१६ कारण' है, किन्तु वे० २० स्थानक' बताते हैं, वो ठीक नहीं है।
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