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ना-शूद्रों का जघन्य संयम प्राप्ति स्थान अनंत गुना है ३ - पुव्विल दो असंखेज्ज० लोग मेरा छट्टाणाणि उचरि गन्तदस्स सम्मुप्पत्तीए को कम्मभूमि श्र णाम ? भररवयविदेहेसु विणीत सरि मज्कमखंड मोनूण, सेस पंचखंडविणिवासीमओ एत्थ श्रकम्मभूमित्रो विविक्खो तेसु धम्मकम्मपत्तिए असंभवेण तन्भावाववत्तदो जई एवं कुदो तत्थ संजमग्गहण संभवो ! ति या संकणिअं । दिसाविजय चक्कवट्टी खंधावारेण सह मज्झिमखंडमागयाणं मिलेच्छरायाणं तत्थ चक्कवट्टियादीहि सह जादवेबहियसंबन्धाणं संजम पडिवत्तिए विरोधाभावादो ! श्रहवा तथत् कन्यकानां चक्रवत्यादिपरिणीतानां गर्भेषूत्पन्ना मातृपक्षापेक्षा स्वयमकर्मभूमिजा इतीह विवक्षिताः, ततो न किञ्चित् विप्रतिषिद्धम् तथाजातीयकानां दीक्षार्हत्वे प्रतिषेधाभावात् ।
प्रश्न - पांच श्रनार्य खंड के म्लेच्छों को दीक्षा के भाव को उत्पन्न कराने वाला योग मिलना मुश्किल है फिर वे दीक्षा कैसे लगे !
उत्तर - चक्रवर्ती के साथ में मध्यम खंड में श्राये हुए म्लेच्छ राजा दीक्षा लें यह सम्भवित है । अथवा चवर्ती और म्लेच्छ कन्या की सन्तान माता के जरिये अनार्य है, अगर वे भी दीक्षा को स्वीकार करें, तो यह भी सम्भवित है । वे दीक्षा लेते हैं, श्रतः पांचों खंडों में संयमस्थान बताये हैं ।
सारांश - पांचों खंड के श्रनाये भी दीक्षा ले सकते हैं, फिर श्राखंड के नाय का तो पूछना ही क्या ?
(mo वीरसेनकृत जयभवला टीका दिगम्बर शास्त्र भंदार की प्रति
८२७, ८२८ )
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