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कपोतचरणा-नलीका, पारापतपदी-काकजंघा भाव०] ।
इन शब्द और अर्थों से पत्ता लग जाता है कि-कपोत शब्द 'वनस्पती' में ही कितना व्यापक है ।
कपोत का सीधा अर्थ-एक कीस्मकी वनस्पति, पारीस पीपल, सफेद कुम्हडा (पेंठा) और कबूतर है ।
जिनका वर्णन वैद्यक ग्रंथो में निम्न प्रकार है । (१) पारापत गुण दोषपारापतं सुमधुरं रुच्यमत्यग्निवातनुत् ।
(सुश्रुत संहिता) (२) पारिसपीपल, गजदंड के गुण दोष
पारिशो दुर्जरः स्निग्धः, कृमिशुक्रकफप्रदः ॥५॥ फले ऽम्लो मधुरो मूलो, कषायः स्वादु मज्जकः ॥६॥
(भावप्रकाश वटादि वर्ग) (३) कोला, कोहडा, पेठा, खबहा, काशीफल के गुण दोषपित्तघ्नं तेषु कुष्मांडं बालं मध्यं कफापहम् । शुक्लं लघूष्णं सक्षारं दीपनं वस्तिशोधनम् ॥२१३॥ सर्वदोषहरं हृद्यं, पथ्यं चेतोविकारिणाम् ॥२१४॥ पेंटा उष्ण दीपक वस्तिशोधक और सर्व दोष हर है
(सुश्रुत्त अ० ४६ फलवर्ग) लघुकुष्माण्डकं रूक्षं मधुरं ग्राहि शीतलम् । दोषलं रक्तपित्तघ्नं मलस्तम्भकरं परम् ॥ ( छोटाकोला-ग्राही, शीतल, रक्तपित्तनाशक और मलरोधक है। कूष्माण्डं शीतलं वृष्यं स्वादु पाकरसं गुरु । हृद्यं रूक्षं रसस्यन्दि श्लेष्मलं वातपित्तजित् ॥ कूष्माण्डशाकं गुरुसन्निपातज्वरामशोकानिलदाहहारि ।।
कोला-शीतल पित्तनाशक ज्वर आम दाह को शान्त करने वाला है।
(कयदेव निघंटु)
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