Book Title: Shvetambar Digamber Part 01 02
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Mafatlal Manekchand Shah

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Page 245
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अतः उसका अर्थ मुरवा और पाक ही है। पुल्लिंग प्रयोग होने के कारण ही इतना अर्थभेद हो जाता है; बादमें आनेवाला पुल्लिंगवाला "अन्ने” शब्द भी इस मत को पुष्ट करता है । दुसरी बात यह है कि-मांसके लीये सीधे जातिवाचक शब्द ही बोलेजाते हैं, किन्तु उन के साथ सरीर शब्द लगाया जाता नहीं है। विपाकसूत्रमें मांसाहार का वर्णन है मगर कीसी स्थान में जातिवाचक नाम के साथ शरीर शब्द नहीं है । हां वनस्पति के साथ में "काय” शब्द मीलता है, माने वनस्पति काय-वनस्पति शरीर ऐसा प्रयोग होता है, वास्तव में सरीरा यह शब्द वनस्पति के साथ ठीक संगति पाता है प्रस्तुत पाठ में कवोय के साथ जो सरीरा शब्द है वह विशेष्य के रूपमें ही है । इसी से भी निर्णीत वात है कि यहां सरीरा शब्द मुरबा व पाक के अर्थ में ही है। तीसरा यह भी विचारणीय बात है कि-"कपोयसरीरा" के पूर्व “दुवे" शब्द देकर उनकी संख्या बताई है, मांस हो तो ट्रकडा होना चाहिये मगर यहां टूकडे बताये गये नहीं है इस हिसाब से भी यह बात मुरवा के पक्ष में पड़ती है। सारांश-यहां “सरीरा" शब्द मुरवा के लीये और “दुवे कवोयसरीरा" शब्द दो कूष्मांड के मुरवा के लीये लीखा गया है (४) "उवक्खडिया" शब्द पर विचार"उवक्खड़िया" यह शब्द पुंल्लिङ्गमें है, संस्कारका सूचक है। उपासकदशांग और विपाकसूत्र वगेरह जिनागमों में मांस के लीये 'भज्जिए' 'तलिए' वगेरह शब्दप्रयोग है "उवक्खड़िया" प्रयोग नहीं है और श्रीभगवतीसूत्र आदि में प्रशस्त भोजनके लीये ही "उवक्खड़िया" शब्द प्रयोग है । माने-मांस के संस्कारमें "उवक्खडिया" प्रयोग किया जाता नहीं है । ____ अतः प्रस्तुत स्थान में "उवक्खड़िया" का प्रयोग हुआ है वह भी "कवायसरीरा" से कपोत-मांस की नहीं किन्तु कूष्मांड पेंठा पाक की ही ताईद करता है । (५) "नो अट्ठो” शब्दपर विचार"नो अट्ठो” यह शब्द निषेध के लीये है। For Private And Personal Use Only

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