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हराहि एए अट्ठो ।
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अस्थि से अने पारियासिए मजारकडए कुक्कुड़ मंसए तमा
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( श्रीभगवतीजी सूत्र शतक - १५ )
जैन - इस पाठके विचारणीय शब्द ये हैं
(१) दुबे (२) कवोय (३) सरीरा (४) उवक्खडिया (५) नो अट्ठो (६) अन्ने (७) पारियासिए (८) मज्जार ( ९ ) कड़ए ( १० ) कुक्कुड (११) मंसए । जीनका विवरण इस प्रकार है ।
(१) दुवे, शब्द पर विचार
"दुवे" यह शब्द "कवोय" की नहीं, किन्तु "कवोयसरीरा” की संख्या बताता है, माने दो कवोय नहीं किन्तु कवोय के दो मुरचे ऐसे अर्थ का द्योतक है।
यदि कवय का अर्थ "पक्षिविशेष" लीया जाय तो यहां दुवे और सरीरा इन शब्दो का समन्वय हो सकता नहीं है।
साफ बात है कि सारा कबूतर पकाया जाता नहीं है और अंगोपांग अलग २ करके पकाया जाय तो दो-शरीर ऐसी संख्या रहती नहीं है । माने दुवे और सरीरा इन दोनों में से एक शब्द निष्फल हो जाता है |
इस के अलावा पक्षी के लीये तो "दूवे कवोया" ही सीधा शब्द है, जिस को छोड़कर यहां दुवे और शरीरा शब्दो का प्रयोग किया गया है जो इरादापूर्वक कवोय का अर्थ कबुतर करनेसे इनकार कर रहा हैं ।
यदि कोय का अर्थ 'वनस्पति विशेष' "लीया जाय तो यहां दुबे और शरीरा इन दोनों शब्दो का ठीक समन्वय हो जाता है । बात भी ठीक है कि कवोय फलका मुरब्बा बना रखा हो तो वे फल सम्पूर्ण और दो वगेरह संख्या से सूचित भी किये जाते हैं । एवं फल- मुरबा के लीये " दुवे कवोय सरोरा " ऐसा प्रयोग भी सार्थक हो जाता है।
इस हालत में मानना ही पड़ेगा कि यहाँ कवोय शब्द जानवर-पक्षिके लीये नहीं, किन्तु फल के लीये प्रयोगित किया गया है।
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