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उक्त लेख का आशय यह है कि-श्वेताम्बर महावीर चरित्र पर दिगम्बर पने का मुलम्मा चढाकर दिगम्बरीय महावीर चरित्र तैय्यार करो, श्वेताम्बर आगम साहित्यको दिगम्बरत्व के ढांचे में डालकर दिगम्बरीय महावीरउपदेश के रूप में जाहिर करो। इत्यादि।
(२) दिगम्बर विद्वान पं. नथुराम प्रेमीजीने दिगम्बर साहित्य के निर्माताओं की मुलम्मा चढाने की पद्धतिका जो कुछ परिचय दीया है उसे पढ़ने से भी अपने को दिगम्बर साहित्य की कमी का ठीक ख्याल मीलता है। वे लीखते हैं कि-- _“दशवीं शताब्दी के पहिले का कोई भी उल्लेख अभी तक मुझे इस सम्बन्ध में नही मीला, मेरा विश्वास है कि दिगम्बर संप्रदाय में जो बड़े बड़े विद्वान् ग्रंथ कर्ता हुए हैं प्रायः वे किसी मठ या गद्दी के पट्टधर नहीं थे। परन्तु जिन लोगोनें गुर्वावली या पट्टावली बनाई हैं उनके मस्तक में यह बात भरी हुई थी कि जितने भी आचार्य या ग्रंथकर्ता होते हैं वे किसी न किसी गही के अधिकारी होते हैं, इसलीये उन्होंने पूर्ववर्ती सभी विद्वानों की इसी भ्रमात्मक विचार के अनुसार खतौनी कर डाली है और उन्हें पट्टधर बना डाला है।
(गुजराती तत्वार्थसूत्रकी प्रस्तावना) (३) दिगम्बर शास्त्र के प्रकांड अभ्यासी श्रीयुत् लक्ष्मण रघुनाथ भीडे नग्न सत्य जाहिर करते हैं कि-"दिगम्बरोए ब्रह्मचारी क्षल्लक एलक अने दिगम्बर एवी चार प्रतिमाओ गोठवी चार आश्रमोनुं पण जेम अनुकरण कर्यु तेम श्वेताम्बरोप कर्यु नथी"
"कहेवानी मतलव ए छे के वैदिकोना चतुर्वर्णाश्रमनी जेटली असर दिगम्बरो पर थपली देखाय छे तेटली श्वेताम्बरो पर थपली देखाती नथी, एनुं कारण जिनागमोनो लोप मानी प्रभाविक आचार्यों फेरफार करवामां फावी जाय एवी दशा श्वेताम्बरोए नहीं थवा दीधी एज छ । सत् शास्त्रने श्वेताम्बरो सारीरीते वलगी शक्या तेथी तेओ सुदेवने वफादार रही शक्या अने सदगुरुओने जाळवी शक्या। आ त्रयी शुद्ध रहेवाथी श्वेताम्बरोनुं समकित शुद्ध रह्यं अने तेओ बीजानी माठी असर पड़वाथी बची शक्या।
(जैन पु० ४१ अं. ३ पृ.३. ता. १८-१-१९४२ का
जिन शासननो द्विवर्णाश्रमी सनातन धर्म; लेख )
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