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Achar
(७) दि० पं० चम्पालालजी और दि० पं० लालारामजी शास्त्री लीखते हैं कि-- - "वर्तमानकाल में जो ग्रंथ हैं सो सब मूलरूप इस पंचमकालके होनेवाले आचार्यों के बनाए हैं"
(चर्चा सागर चर्चा. २५०, पृ० ५०३) इत्यादि २ प्रमाणो से स्पष्ट है कि-दिगम्बरीय साहित्य श्वेताम्बरीय साहित्य का अनुजीवी साहित्य है, और कुछ २ कल्पना प्रधान भी है।
प्रत्यक्ष प्रमाण है कि-महावीर चरित्र के सबसे प्राचीन ग्रंथ श्री सुधर्मास्वामी कृत आचारांग सूत्र श्रीभद्रबाहुस्वामी कृत कल्पसूत्र और आवश्यक नियुक्ति ही हैं सब दिगम्बरीय महाबीर चरित्र उनके आधार पर बने हैं। फिर भी इन में उपर के लेख के अनुसार बहोत कमी है। बावू कामताप्रसादजी जैनने हाल में ही महावीर चरित्र का नया आविष्कार किया है, जिस में-कलिकाल सर्वश आ० श्री हेमचन्द्रसूरि आदि के महावीर चरित्र से भगवान महावीर स्वामी का छद्मस्थ विहार लेकर तद्दन नये रूपमें दाखल कर दिया है।
इस हालत में भगवान महावीर स्वामी के चरित्र के लीये श्वेताम्बर साहित्य अधिक प्रमाणिक है यहि निर्विवाद सिद्ध हो जाता है।
इसी प्रकार श्वेताम्बर दिगम्बर के ओर २ मान्यता मेद है, वे भी साहित्य की प्राचीनता और अर्वाचीनता के कारण ही है।
दिगम्बर-श्वेताम्बर मानते हैं कि भगवान महावीर स्वामी का गर्भापहार हुआ था।
जैन-वे इसको आश्चर्य घटना भी मानते हैं।
दिगम्बर-श्वेताम्बर मानते हैं कि--भगवान महावीर स्वामीने गर्भ में ही अपने माता-पिता के स्वर्गगमन होने के बाद दीक्षा लेनेका अभिग्रह किया था।
जैन-तीर्थकर तीन ज्ञानवाले होते हैं और वे शानदृष्ट भावि भाव को अनुसरते हैं। भगवान महावीर स्वामीने अपना दीक्षा
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