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था।
[१] की हड्डियों के भूषणवाले भस्म से भद मैले श्मशानी ( १६) काले अजीन और चमड़े के वस्त्रवाले, काल वपाकी (१८) पाकी भंगी (18)
(भा. जिनसेनकृत हरिवंश पुराण, सर्ग २६ को १ से २४) ३-कियत्काल गत कन्या, प्रासाद्य जिनमन्दिरम् । सपयों महता चक्रु-मनोवाक्कायशुद्धितः ॥ ६॥
(गौतमचरित्र भधि• ३ पलो ५९ तीन शूद्र कन्या का मा पा3) ४-धनदत्त ग्वाले ने जिनमन्दिर में जिनप्रतिमा के चरणों पर कमल पुष्प चढ़ाया। (भाराधनाकथाकोप, या १) ५-सोमदत्त माली प्रतिदिन जिनेन्द्र भगवान की पूजा करता
(भारानाथाकोष) दिगम्बर- क्या दिगम्बर शास्त्र में शूद्रों की मुनि दीक्षा और मुक्ति का विधान है ?
जैन हांजी है ! कुछ २ पाठ दखिय१-नापि पंचमहात्रतग्रहणयोग्यता उच्चैोत्रेण क्रियते,
(षट खर, खं० ४ ४० ५ सू. १२६ की धषका टीका ) यदि यह कहा जाय कि उच्च गोत्र के उदय से पांच महावतों के ग्रहण की योग्यता उत्पन्न होती है और इसी लिये जिनमें पांच महावत के ग्रहण की योग्यता पाई जाय उन्हें ही उच्च गोत्री समझा जाय, तो यह भी ठीक नहीं है।
(दि० पं० जुगलकिशोर मुख्तारी का लेख, भनेकान्त वर्ष किरण : पृ० १)
२-अकम्मभूमियस्स पड़िवज्जमाणस्स जहएणयं संजमद्वाणमणंतगुणं (चर्णि सूत्र)
(षटखंडागम संजमादि भषिकार, पूर्णि)
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