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६ – एवं गुणविशिष्टो पुरुषो जिनदीक्षाग्रहण-योग्या भवति, यथायोग्यं सच्छूद्राद्यपि ।
( भा० कुन्दकुन्दकृत प्रवचनसार की भा० जगसेनकृत टीका ) १० धीवर की लड़की "काणा" तुल्लिका होकर व्रत करके स्वर्ग को गई ।
११=भैंसों तक के माँस को खानेवाले मृगध्वज ने मुनिदत्त मुनि से दीक्षा लेकर तप द्वारा घातिया कर्मों का नाश करके जगपूज्यता प्राप्त की ।
( दि० आराधना कथाकोष, कथा - ५५ )
१२- सम्यग्दर्शनसंशुद्धाः, शुद्धैकवसनावृताः । सहस्रशो दधुः शुद्धाः, नार्यस्तत्रार्थिकाव्रतम् ।
: ( भ० जिनसेनकृत हरिवंशपुराण स० २ श्लोक १३३ ) "अशुद्ध वंश की उपजी सम्यकदर्शनकार शुद्ध कहि निर्मल अर शुद्ध कहिए श्वेत वस्त्र की धरन हारी हजारों रानी अर्थका भई श्रर कइ एक मनुष्य चारों ही वर्ण के पांच श्रणुव्रत, तीन गुणवत चार शिक्षा व्रत धार श्रावक भए अर चारों ही वर्ण की कइ एक स्त्री श्राविका भई और सिंहादिक तीच बहुत श्रावक के व्रत धारते भये । यथाशक्ति नेम लिये तिष्ठे और देव सम्यक दर्शन ने धारक व्रत सम्यग्दृष्टि हुए जिन पूजा विष अनुरागी भए ।
[ दि० पं० दौलतराम जैपुरवालेकृत हरिवंशपुराण स० २ २७० १३३ से १३५ की पनिका जिनवाणी कार्यालय कलकत्ता से मुद्रित पृष्ठ २३ जै ३९-२३]
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१३- गोत्र कर्म जीव के असली स्वभाव को घात नहीं करता, इसी कारण अघार्ताया कहलाता है । केवलज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद अर्थात् तेरहवें गुणस्थान में भी इसका "उदय" बना रहता है,
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