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असनी खलु पढम, दोच्चं च सरीसया, तइय पक्खी ॥ सीहा जंति चउथी, उरगा पुण पंचमी पुढवीं ॥ १ ॥ बडी य इत्थीयानो, मच्छा मणुया य सत्तमी पुढवीं। पसो परमोवाश्रो, बोधव्यो नरय पुढवीसु ॥२॥
अर्थ-पहिल नरक में असंझी ( असैनी), दूसरे में सरीसर्प, तृतीय में पक्षी, चतुर्थ में सिंह, पाँचवें में उरपरिसर्प, छटवें में स्त्री और सप्तम में मनुष्य व मत्स्य, जा सकते हैं। इस प्रकार सातों नरकों की उत्कृष्ट उत्पत्ति कही गई है।
यहाँ साफ २ है कि स्त्री सातवें नरक में नहीं जा सकती है तो गति की समानता के नियम से मानना ही पड़ेगा कि स्त्री मोक्ष में भी नहीं जासकती है।
जैन--महानुभाव ? उक्त संहनन वाले सभी जीव उक्त गति को अवश्य पा सके एसा एकान्त नियम नहीं है किन्तु व जीव उनमे भागे न जासक यह एकान्त नियम है। यह उत्कृष्ट उपपात की बात है जो सबको मंजूर है । इस सिध्धांत से नो वज ऋषभनाराच संहनन वाली स्त्री सातवे नरक में जावे या न जावे किन्तु मोक्ष में जा सकती है, इसमें कीसी भी प्रकार से शंका का स्थान नहीं है।
मगर अापन गनि समानता का जो नक्सा खींचा है वह तो कीसी की सनक मात्र है। ऐसा नियम ही नहीं है और हो भी नहीं सकता है। क्यों ! कि-कोई नरक में जा सकन हं, मोक्ष में जा सकते ही नहीं. कोई मोक्ष में जा सकते हैं नरक में जाते ही नहीं है, और कोई २ नीचे में विभिन्न नर को में जा सकते हैं किन्तु ऊपर तो नियत स्वर्ग में ही जा सकते हैं
इस प्रकार जीव विशेषता या कर्म वैविध्य के कारण उर्वगति
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