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यदि केवली भगवान आहार लेते हैं तो क्या उक्त्य तप भी करते हैं ?
जैन-हा, वे आहार के अभावरूप तप भी करते हैं।
दिगम्बर-केवली भगवान के आहार और तप के लिये शास्त्रप्रमाण दीजिये!
जैन-दिगम्बर शास्त्रों में केवली भगवान के आहार और तपके प्रमाण ये हैं। (१) सर्व मान्य आ० श्री उमास्वातिजी कहते हैं
एकादश जिने । (तवार्थ० अ० ९ सू० ११) . केवली भगवान को ११ परिषह होती हैं माने शुद्ध आहार पानी मिलने पर क्षुधा और प्यास का शमन होता है। (२) आ० कुन्दकुन्द बताते हैं कि
गइ इंदियं च काए, जोए वेए कसाय णाणे य ।
संजम दंसण लेसा, भविया सम्मत्त सण्णि आहारे ॥३३॥ टीका-आहारे आहारकद्वयमध्येऽईत आहारकानाहारकद्वयं । ___यहाँ टीकाकार ने आहारक शब्द बना लिया है वह उसका अनाभोग है । वास्तविक बात यह है कि केवली भगवान आहार लेते हैं, नहीं भी लेते हैं, आहारी है, अनाहारी भी हैं ॥
आहारो य सरीरो, तह इंदिय आण पाण भासा य । पज्जत्तिगुणसमिद्धो, उत्तमदेवो हबइ अरुहो ॥३४॥ पंच वि इंदिय पाणा, मण वय कारण तिनि बलपाणा, आणप्पाणप्पाणा, आउग पाणेण होति दह पाणा ॥३५।
( बोधप्रामृत ) (३) आ० समन्तभद्रजी लिखते हैं कि
बाह्यं तपः परम दुश्चरमाचरंस्त्वं । आध्यात्मिकस्य तपसः परिवहणार्थम् ।। ध्यानं निरस्य कलुषट्यमुत्तरस्मिन् । ध्यानद्वये ववृतिषेऽतिशयोपपन्ने ॥८३।।
(बृहत्स्वंयभूस्तोत्रम् )
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