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काम करने चाहिये” ।
(जैन मित्र, व० ३ ० २३ पृ० ३६० ता० १४-४-३६ )
इन वैज्ञानिक प्रमाणों से निर्विवाद है कि स्त्री शान्ति की इच्छुका हैं, नम्र, वीर, साहसिक, सहनशील और कोमल होती है । उससे कठोर काम होना मुश्किल हैं । माने - स्त्री साहस, नम्रता, वीरता इत्यादि गुणों से कर्म की निर्झरा करने वाली और मोक्ष की अधिकारिणी है। पुरुष के योग्य कठोर काम करने में असमर्थ होने से सातवें नरक में नहीं जाती है ।
इसके अलावा वर्तमान में भी पुरुषों की अपेक्षा स्त्री जाति में अधिक सहृदयता होने के अनेक प्रत्यक्ष प्रमाण मिलते हैं जैसेखून, कतल, चोरी, बलात्कार. लूट और दगाबाजी इत्यादि अधम कार्यों में फीसदी पुरुष और स्त्रियों की औसत कितनी २ हैं ! इसका खुलासा अदालती दफ्तरों से मिल सकता हैं । साधारण तया ऐसे क्रूर कार्यों में मरदों की संख्या ही अधिक मिलगी ।
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जब देवदर्शन, सामायिक, तपस्या इत्यादि कार्यों में तो स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कई गुनी बढ़ जाती है ।
एक महर्षि ने ठीक ही कहा है
सप्तम्यां भुवि नो गतिः परिणतिः प्रायेो न शास्त्राहवे । नो विष्णु प्रतिविष्णु पातककथा यस्या न देशव्यथा ॥ शीलात् पुण्यतनो जनो मृदुतनोः तस्या प्रशंस्याशयः कः सिद्धिं प्रतिपद्यते न निपुणः तत्कर्मणां लाघवात् ॥ २ ॥ अत्जन्म महे महेन्द्र महिला लोकंपूणे र्या गुणैः ॥ ३ ॥
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इस प्रकार भिन्न २ प्रमाणो की उपस्थीति में मानना पड़ता हैं कि स्त्री सातवें नरक में न जाय, किन्तु मोक्ष में जाय, यह होना सर्वथा स्वाभाविक है ।